मामा-मामा कर मामू बना रहे शिवराज ! ''आदिवासीयों के नाम पर ग्रामीणों से हो रहा छल''
मामा-मामा कर मामू बना रहे शिवराज ! ''आदिवासीयों के नाम पर ग्रामीणों से हो रहा छल''
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दिलीप सिंह की रिपोर्ट

मध्यप्रदेश में अगला साल 2023 चुनावी साल होगा, लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अंत समय तक प्रदेश के आदिवासीयों की उपेक्षा कर और आदिवासी क्षेत्रों को उपेक्षित रख कर आदिवासीयों को अपने आप को मामा-मामा बताकर असल मामाओं को मामू बनाने का काम किया है। मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल में रतलाम, झाबुआ, आलिराजपुर, जिले को मंत्रिमंडल से वंचित रखा है। वहीं इन जिलों के लिये की गई उनके द्वारा घोषणाओं को भी मूर्त रूप नहीं मिल पाया है। जिनमें नर्मदा का पानी नर्मदा से लेकर आलिराजपुर, जोबट, झाबुआ, पेटलावद और अन्य स्थानों तक पहूंचानें की घोषणाएं अनेकों बार शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गई। लेकिन आज तक इस योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। 

वहीं इन जिलों के एक भी जनप्रतिनिधि, विधायक को अपने मंत्रिमंडल और अन्य निगम, मंडल में स्थान नहीं देकर इन क्षेत्रों की लगातार उपेक्षा की गई और इन जिलों के विकास को उपेक्षित रखा गया। झाबुआ और आलिराजपुर जिले से एक मात्र भाजपा विधायक श्रीमति सुलोचना रावत को उपचुनाव में विजयी होने पर मंत्रिमंडल में स्थान देने का वादा किया गया। लेकिन उन्हे मंत्री नहीं बनाया गया, आज सुलोचना रावत बिमार होकर बडौदा में अपना ईलाज करवा रही है। वहीं रतलाम से भी दो विधायक होने के बाद किसी को भी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया। धार से भी यही स्थिति है कांग्रेस से आये राज्यवर्धन को सिंधिया गुट को साधने के लिये सिर्फ लिया गया है।

झाबुआ जिले में बेतुल-अहमदाबाद राष्ट्रीय राज्य मार्ग का काम लंबे समय से खटाई में ही चल रहा है यह कब तक पूरा होगा कोई नहीं बता सकता। आए दिन माछलिया घाट में चक्का जाम, लूट खसोट होती रहती है वहीं कई दुर्घटनाऐं भी लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्षेत्र के सांसद गुमानसिंह दो बार केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिल चुके लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।

जिले में आदिवासीयों के नाम पर कई योजनाऐं प्रारंभ करने की बात कही गई लेकिन कोई भी धरातल पर दिखलाई नहीं देती। मुख्यमंत्री आए दिन आदिवासीयों को रिझाने के नाम पर इंदौर में करोडों रूपये खर्च कर आयोजन कर रहे है लेकिन आदिवासी जिलों में कोई विकास के काम नहीं हो रहे है। आज भी आदिवासी काम की तलाष में प्रदेश व जिलों से बहार जा रहे है। चुनावी साल है लेकिन आदिवासी जिलों के विकास की रफतार सुस्त पडी है, इंदौर-दाहोद रेल्वे लाईन का काम भी सुस्त है, इससे आदिवासी जिलों के आदिवासीयों को विश्वास भाजपा पर बैठता दिखलाई नहीं पड़ रहा है।

आज भी आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासीयों के बिच कांग्रेस की पकड मजबूत दिखलाई पडती है और आदिवासीयों का विश्वास कांग्रेस की और झुका दिखलाई पडता है। ऐसे में आने वाले दिनों में विधानसभा के चुनावों में आलिराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, धार, बदनावर, कुक्षी, धरमपुरी, सरदारपुर, गंधवानी, रतलाम, रतलाम ग्रामीण, सैलाना आदि विधानसभा सिटों पर भाजपा को पसिना आने वाला है। झाबुआ और आलिराजपुर जिले से मात्र एक जोबट पर तथा धार जिले से धार और बदनावर पर तथा रतलाम में रतलाम और रतलाम ग्रामीण पर ही भाजपा का कब्जा है। अर्थात 14 विधानसभा सिटों में से सिर्फ पांच पर भाजपा का कब्जा है। इसके बावजूद भाजपा की सरकार द्वारा क्षेत्र के लोगों को मामू बनाने का काम किया जा रहा है, अंतिम चुनावी साल के प्रारंभीक कुछ महिनों में अगर भाजपा ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो एक बार फिर उसे इन सिटों पर मुंह की खानी पड़ सकती है!

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