भारत की इस महिला ने खोला था लड़कियों के लिए पहला स्कूल? जानिए उनसे जुड़ा ये किस्सा
भारत की इस महिला ने खोला था लड़कियों के लिए पहला स्कूल? जानिए उनसे जुड़ा ये किस्सा
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आज के ही दिन देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्‍म हुआ था। इनका जन्‍म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे एवं माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले अध्यापिका होने के साथ भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक एवं मराठी कवयित्री भी थी। इन्‍हें बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। कई बार तो ऐसा भी हुआ जब इन्हें समाज के ठेकेदारों से पत्थर भी खाने पड़े। आज भारत की महिलाएं भले ही टेक्‍नोलॉजी से लेकर स्‍पेस तक में अपना वर्चास्‍व स्‍थापित कर चुके हों, मगर स्वतंत्रता के पहले तक भारत में महिलाओं की गिनती दोयम दर्जे में होती थी। आज की भांति उन्‍हें शिक्षा का अधिकार नहीं था। वहीं यदि बात 18वीं सदी की करें तो उस वक़्त महिलाओं का विद्यालय जाना भी पाप समझा जाता था। ऐसे वक़्त में सावित्रीबाई फुले ने जो कर दिखाया वह कोई साधारण सफलता नहीं है।

वह जब विद्यालय पढ़ने जाती थीं तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे। इस सब के बाद भी वह अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकीं एवं लड़कियों व महिलाओं को शिक्षा का हक दिलाया। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। भारत की पहली महिला अध्यापिका सावित्रीबाई ने अपने पति समाजसेवी महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी। सावित्रीबाई की शादी बहुत ही छोटी उम्र में हो गई थी। उनकी शादी सिर्फ नौ साल की उम्र में वर्ष 1940 में समाजसेवी ज्योतिराव फुले से हो गया। शादी के बाद वह जल्द ही अपने पति के साथ पुणे आ गईं। विवाह के वक़्त वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं। मगर पढ़ाई में उनका मन बहुत लगता था। उनके पढ़ने और सीखने की लगन से प्रभावित होकर उनके पति ने उन्हें आगे पढ़ना और लिखना सिखाया। सावित्रीबाई ने अहमदनगर एवं पुणे में शिक्षक बनने का प्रशिक्षण लिया तथा एक योग्य अध्यापिका बनीं।

सावित्रीबाई ने अपने 18वें जन्‍मदिवस पर 3 जनवरी 1848 को पुणे में अपने पति के साथ मिलकर पहले विद्यालय की स्‍थापना की। जिसमें विभिन्न जातियों की नौ लड़कियों को दाखिला दिया गया। एक वर्ष में सावित्रीबाई एवं महात्मा फुले पांच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये वर्ष 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। छात्राओं की शिक्षा पर उस वक़्त सामाजिक प्रतिबंध था। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न केवल स्वयं पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया। 

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