राजीव गांधी को नहीं थी सियासत में कोई भी दिलचस्पी
राजीव गांधी को नहीं थी सियासत में कोई भी दिलचस्पी
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राजीव गांधी का जन्म मुंबई में 20 अगस्त 1944 को इंदिरा और फिरोज गांधी के घर हुआ था। 1951 में, राजीव और संजय को शिव निकेतन स्कूल में भर्ती कराया गया, जहाँ शिक्षकों ने कहा कि राजीव शर्मीले और अंतर्मुखी स्वाभाव के है, और "पेंटिंग और ड्राइंग में उन्हें बहुत ही रूचि है। 1954 में उन्हें वेल्हम बॉयज़ स्कूल, देहरादून और दून स्कूल, देहरादून में भर्ती कराया गया, जहाँ दो साल बाद संजय ने उन्हें ज्वाइन किया।  राजीव को 1961 में ए-लेवल की पढ़ाई के लिए लंदन भेजा गया था। राजीव की शिक्षा स्विट्ज़रलैंड के एक अंतरराष्ट्रीय बोर्डिंग स्कूल, इकोले डी'हुमैनिटे में भी हुई थी। 1962 से 1964 तक उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन डिग्री हासिल नहीं की। 1966 में उन्होंने इंपीरियल कॉलेज लंदन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एक कोर्स शुरू किया, लेकिन इसे भी पूरा नहीं किया। गांधी वास्तव में पर्याप्त अध्ययनशील नहीं थे, जैसा कि उन्होंने बाद में स्वीकार किया।

राजीव गांधी की सियासत में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन में पाइलट थे। आपातकाल के बाद जब इन्दिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक प्लेन दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा को सहायता देने के लिए सन् 1982 में राजीव गांधी ने राजनीति में एंट्री ली। वो अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीत कर सदन पहुंचे और 31 अक्टूबर 1984 को आतंकवादियों द्वारा पीएम इन्दिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद राजीव गांधी भारत के अगले प्रधानमंत्री बने और अगले आम चुनावों में सबसे ज्यादा बहुमत पाकर प्रधानमंत्री बने रहे।

विपक्षी दलों द्वारा राजीव गांधी पर 64 करोड़ रुपए का बोफोर्स घोटाला करने का आरोप भी लगा और इन आरोपों के चलते अगले चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका। उन पर दूसरा बड़ा आरोप शाहबानो मामले में लगा जब उन्होने संसद में कांग्रेस के प्रचण्ड बहुमत का गलत इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्टा विधेयक पारित करवा लिया। 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में राजीव द्वारा दिए गए बयान की भी काफी आलोचना हुई। उस समय राजीव ने कहा था कि "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है।" आपको बता दें कि इन दंगों में लगभग 17000 के करीब सिख मारे गए थे। इसके बाद 21 मई 1991 के आम चुनाव में प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक भयंकर बम विस्फोट में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी।

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