बाबर की कब्र पर राहुल गांधी, नेहरू-इंदिरा भी गए थे यहाँ ! कांग्रेस ने ठुकराया राम मंदिर का निमंत्रण, तो भाजपा ने दिखाई पुरानी तस्वीर
बाबर की कब्र पर राहुल गांधी, नेहरू-इंदिरा भी गए थे यहाँ ! कांग्रेस ने ठुकराया राम मंदिर का निमंत्रण, तो भाजपा ने दिखाई पुरानी तस्वीर
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गुवाहाटी: कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक समारोह के निमंत्रण को ठुकराने पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। विरोधी पक्ष का कहना है कि, कांग्रेस नेता, चरारे शरीफ, अजमेर शरीफ, हाजी अली जैसी दरगाहों पर जा सकते हैं, अपने घरों में इफ्तार पार्टियां दे सकते हैं, लेकिन राम मंदिर का निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं आ सकते, जो 500 सालों के संघर्ष के बाद बन रहा है। इसको लेकर कांग्रेस के निर्णय पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। 

 

इसी बीच, असम के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने अफगानिस्तान में बाबर की कब्र पर राहुल गांधी की एक पुरानी तस्वीर साझा की है और कहा कि गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों ने उस जगह (बाबर की कब्र) का दौरा किया है, लेकिन उनकी नफरत केवल हिंदुओं के लिए है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि, '2005 में राहुल गांधी सहित गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों ने अफगानिस्तान में बाबर के मकबरे का दौरा किया था। राम लला से इतनी नफरत क्यों? आप हिंदुओं से इतनी नफरत क्यों करते हैं?''  उल्लेखनीय है कि, देश के प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक गांधी-नेहरू परिवार का कोई भी सदस्य टेंट में रहे रामलला के दर्शन हेतु नहीं गया है। पंडित नेहरू को तो सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का निमंत्रण भी दिया गया था, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। कहा ये भी जाता है कि, नेहरू जी ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को भी वहां जाने के लिए मना किया था। किन्तु राजेंद्र बाबू वहां गए और सोमनाथ मंदिर के समारोह में शामिल हुए। हालाँकि, गांधी -नेहरू परिवार के वंशजों के बाबर की कब्र पर जाने के कई किस्से किताबों में दर्ज हैं। नेहरू, इंदिरा से लेकर राहुल गांधी तक वहां गए हैं, लेकिन एक आक्रांता की कब्र पर वे क्या करने गए थे, इसका उल्लेख भी कुछ किताबों में मिलता है हालाँकि, ये परिवार उसी अफगानिस्तान में स्थित सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कब्र पर कभी नहीं गया, जो वहां दयनीय दशा में है  

 

इससे पहले गुरुवार को, असम के सीएम ने कहा था कि कांग्रेस को हिंदू समुदाय के खिलाफ "अपने पापों को कम करने" का मौका दिया गया था, लेकिन इस फैसले के कारण इतिहास पार्टी को "वर्षों और दशकों" तक "हिंदू विरोधी" मानता रहेगा। गौरतलब है कि, राम मंदिर का 'प्राण प्रतिष्ठा' या अभिषेक समारोह 22 जनवरी को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में आयोजित किया जाएगा। खड़गे, गांधी और कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी आमंत्रित लोगों की सूची में शामिल थे। हालांकि, तीनों ने समारोह को भाजपा और आरएसएस का कार्यक्रम बताते हुए निमंत्रण ठुकरा दिया।

 

सीएम सरमा ने यह भी कहा कि हिंदू समुदाय का विरोध करने की परंपरा पूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जब उन्होंने 1951 में सोमनाथ मंदिर समारोह का बहिष्कार किया था। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस की वर्तमान पीढ़ी के साथ भी यही परंपरा जारी है। कांग्रेस को हिंदू समुदाय और सभ्यता दोनों के खिलाफ अपने पापों का प्रायश्चित करने का सुनहरा अवसर मिला था, लेकिन निमंत्रण ठुकराकर कांग्रेस ने ये मौका गंवा दिया है।' 

वहीं, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की ओर से जारी एक बयान में पार्टी ने कहा कि भगवान राम की पूजा लाखों लोग करते हैं, लेकिन धर्म एक व्यक्तिगत मामला है। इसमें आगे कहा गया कि RSS और भाजपा ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर का राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है।  बयान में कहा गया है कि, भाजपा और RSS के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया गया है। कांग्रेस के इस कदम पर सत्तारूढ़ भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि पार्टी का भगवान विरोधी चेहरा जनता के सामने आ गया है। भाजपा ने कहा कि, जो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर श्री राम को काल्पनिक बता चुकी थी, और बाबरी मस्जिद वापस बनवाने का वादा कर चुकी थी, वो आखिर कैसे इस कार्यक्रम में शामिल हो सकती थी।  

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