अहमदाबाद: केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल 21 अगस्त से 2 दिन के लिए गुजरात दौरे पर आए थे। यहां उन्होंने पाटन में रह रहे एक ऐसे परिवार से भेंट की जो 900 वर्ष पुरानी एक विशेष कला को बचाए हुए है। भारत में यह एकमात्र परिवार है, जो पटोला साड़ी बुनने का काम करता है। पाटन में बनने वाली पटोला साड़ी का दाम 2 लाख रुपये से आरम्भ होकर 4 लाख तक होता है। ऐसा बोला जाता है कि 12वीं शताब्दी में सोलंकी वंश के राजा कुमारपाल ने महाराष्ट्र के जलना से पटोला बुनने वाले 700 परिवारों को पाटन में बसने के लिए बुलाया था तथा इस प्रकार पाटन पटोला की प्रथा आरम्भ हुई थी। राजा विशेष मौकों पर पटोला सिल्क का पट्टा ही पहनते थे। पटोला आर्ट इतनी अधिक अनमोल होती है कि 1934 में भी एक पटोला साड़ी का दाम 100 रुपये था।
वही पटोला बनाने वाले भरतभाई साल्वी ने बताया कि पटोला साड़ी का पूरा काम हाथ से होता है। यह एक हैंडीक्राफ्ट है न कि हैंडलूम। पटोला साड़ी बनाने का प्रॉसेस बहुत ही अधिक मुश्किल है किन्तु उन व्यक्तियों के लिए जो इन कला को नहीं जानते है। यदि एक भी धागा इधर से उधर हो जाए तो पूरी साड़ी खराब हो जाती है। इस साड़ी को बनाने में कंप्यूटराइज्ड मशीन या पावरलूम काम नहीं आ सकता। इसके लिए अनुभवी एवं सधे हुए हाथ ही चाहिए। साल्वी ने बताया कि यह साड़ी लगभग 4 से 6 महीने में बनकर तैयार होती है। इसका दाम 4 लाख रुपये तक होता है। सबसे विशेष बात यह है कि प्योर सिल्क से बनने वाली ओरिजनल पटोला साड़ी पूरी दुनिया में केवल गुजरात के पाटन में ही बनती है। इस साड़ी का कारोबार सिर्फ ऑर्डर पर ही चलता है।
भरतभाई ने बताया कि पटोला साड़ी को टाइंग, डाइंग एवं वीविंग टेक्नीक से बनाया जाता है। पटोला साड़ी की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे दोनों ओर से पहना जा सकता है। इस आर्ट को 'डबल इकत' आर्ट बोलते हैं डबल इकत में धागे को लंबाई एवं चौड़ाई दोनों प्रकार से आपस में क्रॉस करते हुए फंसाकर बुनाई की जाती है। डबल इकत को मदर ऑफ ऑल इकत भी बोला जाता है। इसके चलते साड़ी में यह अंतर करना जटिल हो जाता है कि कौन सी साइड सीधी है तथा कौन सी उल्टी। पटोला साड़ी का रंग कभी फेड नहीं होता। यह साड़ी 100 वर्ष तक चलती है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल पाटन में परिवार से मुलाकात करने पटोला हाउस गए थे। यहां उन्होंने पटोला के बनने की प्रक्रिया भी जानी। हालांकि इस के चलते उन्होंने चिंता व्यक्त की पटोला साड़ी महंगी होने की वजह से अब नकली भी बनने लगी है, जिस वजह से लोग असली पटोला को नहीं जान पा रहे हैं। पीयूष गोयल ने भरतभाई से मुलाकात के चलते आश्वासन दिया कि सरकार पटोला कला को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव सहायता करेगी। इस कला को बचाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर खोलने में भी सहायता करेगी।
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