ED-CBI के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे 14 सियासी दल,  CJI बोले- आम जनता से ऊपर नहीं हैं नेता
ED-CBI के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे 14 सियासी दल, CJI बोले- आम जनता से ऊपर नहीं हैं नेता
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार (5 अप्रैल) को 14 सियासी दलों द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया है। दरअसल, 14 सियासी दलों ने इस याचिका में आरोप लगाते हुए कहा था कि केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ED और CBI जैसी जाँच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल कर रही है। देशभर की 14 पार्टियों का आरोप था कि मोदी सरकार विरोध के स्वर को दबाने के लिए ED-CBI का इस्तेमाल हथियार की तरह कर रही है, विपक्षी नेताओं को अरेस्ट किया जा रहा है।

चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि वो तथ्यात्मक परिप्रेक्ष्य के बगैर कोई सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकते। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यदि किसी का कोई व्यक्तिगत मामला हो, तभी वो इस याचिका को सुन सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी सलाह दी कि राजनेता अपने आप को आम जनता से ऊपर नहीं रख सकते, इसीलिए उनके मामलों में कोई अलग से कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किया जा सकता।  अदालत ने कहा कि, राजेनता, आम नागरिकों की तुलना में अधिक प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकते। कोर्ट ने कांग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पुछा कि, 'क्या आप कह रहे हैं कि राजनेताओं को  जांच से छूट मिलनी चाहिए?' अदालत ने कहा कि, देश के सभी नागरिक एक ही कानून के आधीन हैं। अदालत ने स्पष्ट कहा कि, राजनेताओं के लिए अलग प्रक्रिया कैसे हो सकती है ?

बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट में ED-CBI के खिलाफ याचिका दाखिल करने वालों में कांग्रेस, DMK, RJD, BRS, TMC, AAP, NCP, शिवसेना (UBT), JMM, JDU, CPM, CPI, समाजवादी पार्टी (सपा) और जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस का नाम शामिल हैं। बता दें कि, ये जितने भी सियासी दल, जांच एजेंसियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, उनमे से लगभग हर पार्टी के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच चल रही है। कांग्रेस के सोनिया गांधी और राहुल गांधी, नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर चल रहे हैं। RJD के लालू प्रसाद चारा घोटाले में जेल काट चुके हैं और अब उनका पूरा परिवार नौकरी के बदले जमीन (Land For Job Scam) मामले में जाँच का सामना कर रहा है। BRS की के कविता दिल्ली के शराब घोटाले में घिरी हुईं हैं।  वहीं, AAP के सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया पहले ही जेल में हैं, उन्हें जमानत नहीं मिल पा रही है। वो कोर्ट में खुद को बेगुनाह साबित नहीं कर पा रहे हैं। NCP के बड़े नेता और मंत्री रह चुके नवाब मलिक भी भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं। उद्धव की शिवसेना के बड़े नेता संजय राउत के खिलाफ भी पात्रा चॉल मामले में जांच चल रही है। TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी भी कोयला घोटाले में जांच का सामना कर रहे हैं, वहीं ममता के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी शिक्षक भर्ती घोटाले के कारण जेल में हैं। इस तरह सुप्रीम कोर्ट पहुँचने वाली लगभग हर पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, ऐसे में ये सियासी दल अपने नेताओं की गिरफ़्तारी के लिए अलग दिशानिर्देश देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। लेकिन, अदालत ने यह कहते हुए याचिका ख़ारिज कर दी कि, राजनेता भी आम जनता से ऊपर नहीं हैं और उनके लिए अलग से दिशानिर्देश नहीं दिए जा सकते।  

यहाँ ये भी गौर करने लायक है कि, एजेंसियां जब भी किसी को अरेस्ट करती है, तो जल्द से जल्द आरोपी को कोर्ट में पेश कर कोर्ट के सामने सबूतों के साथ यह दलील रखती हैं कि, आरोपी की हिरासत क्यों जरुरी है और उसे क्यों अरेस्ट किया गया। जब कोर्ट एजेंसियों के तर्क से संतुष्ट होती है, तभी वह हिरासत को मंजूरी देती है। वहीं, आरोपी के वकील भी कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र होते हैं। यदि आरोपी के वकील अपने क्लाइंट को बेकसूर साबित करने के लिए कोर्ट में प्रमाण या ठोस तर्क प्रस्तुत करते हैं, तो उसे बरी कर दिया जाता है या जाँच जारी रहने तक जमानत दे दी जाती है। ऐसे में देखा जाए तो हिरासत में रखने या रिहा करने का फैसला कोर्ट का ही होता है, एजेंसियां केवल सबूत पेश करती हैं। 

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