बिहार की राजनीति से लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद जिस तरह तेजस्वी यादव लंबे अज्ञातवास में रहे, उससे विपक्षी महागठबंधन व राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को नुकसान हुआ है. इस बीच एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) से बच्चों की मौत तथा कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर विपक्ष नेतृत्वविहीन रहा. विधानमंडल के मानसून सत्र (Monsoon Session) के दौरान वे आ तो गए हैं, लेकिन उनके एक महीने तक राजनीति से गायब रहने के कारण महागठबंधन में बिखराव के संकेत भी आने लगे हैं. आइए जानते है पूरी जानकारी विस्तार से
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तेजस्वी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफ देने से दबाव बढ़ गया है. लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी ही बिहार में आरजेडी व महागठबंधन की ड्राइविंग सीट पर थे. लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की हार के बाद आरजेडी नेता तेजस्वी यादव करीब एक महीने बिहार से बाहर रहे. उन्होंने खुद को सियासी गतिविधियों से भी दूर रखा. इस दौरान राज्य में एईएस से बच्चों की बड़े पैमाने पर मौतें हुईं. कानून-व्यवस्था के मुद्दे भी खड़े हुए. लेकिन तेजस्वी ने जनता से जुड़े इन मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी. अज्ञातवास के बाद तेजस्वी बतौर नेता प्रतिपक्ष बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) के मानसून सत्र में विपक्ष का नेतृत्व करेंगे. सत्र के पहले दिन तो वे आए ही नहीं. बीते सोमवार को जब वे वापस पटना आए तो अपनी गैरहाजिरी का कारण बीमारी को बताते हुए केवल इतना कहा कि वे सदन में सरकार को घेरेंगे. लेकिन मानसून सत्र में बुधवार तक वे सदन में नहीं आए. जंबे समय के बाद तेजस्वी गुरुवार को विधानसभा में पहुंचे.
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प्राप्त जानकारी के अनुसार लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व आरजेडी ही कर रहा था. लेकिन चुनाव में आरजेडी का खाता तक नहीं खुला. जहानाबाद की सीट इस कारण नहीं मिल सकी कि वहां वहां लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने आरजेडी के खिलाफ लालू-राबड़ी मोर्चा के बैनर तले अपना प्रत्याशी खड़ा कर अपनी ही पार्टी के वोट काट दिए. अगर जहानाबाद की सीट मिल जाती तो कम-से-कम पार्टी शून्य पर आउट नहीं होती. पार्टी पर प्रभुत्व के लिए तेजस्वी व तेज प्रताप के बीच मचे घमासान से दोनों भाई भले ही इनकार करें, उनके बीच सियासी समन्वय के अभाव ने पार्टी को नुकसान जरूर पहुंचाया है. इससे विरोध के सुर फूटे हैं.
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