जर्मनी में पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के वैज्ञानिकों का ने यह दावा है कि यदि कार्वन उत्सर्जन की यह रफ़्तार रही तो 15 साल की अवधि में समुद्र का जलस्तर भयंकर स्तर पर पहुंच जाएगा। वैज्ञानिकों के समूह का कहना है कि समुद्र का जलस्तर करीब 20 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा।
उन्होंने बताया कि यदि कार्बन उत्सर्जन को लेकर ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते का पालन किया जाए तो भी समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है। 2016 में पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता का लक्ष्य विश्व के वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक कम करना था। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह लक्ष्य भी समुद्र के जलस्तर को बढ़ने से नहीं रोक सकता है।
पीएनएएस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि 20 सेंटीमीटर के समुद्र स्तर में बढ़ोतरी का लगभग आधा श्रेय दुनिया के शीर्ष चार बड़े प्रदूषक राष्ट्रों को जाता है। इसमें अमेरिका, चीन, भारत और रूस मुख्य है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ भी इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है। अमेरिका के ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक पीटर क्लार्क और सह-लेखक ने कहा कि जब हम वायुमंडल कार्बन का अधिक उत्सर्जन किया जाता है, तो तापमान में वृद्धि तत्काल होती है। लेकिन उस वार्मिंग की तुलना में समुद्र का स्तर बढ़ने में बहुत अधिक समय लगता है।
क्लार्क ने कहा कि यदि आप फ्रीजर से एक आइस क्यूब लेंगे और इसे फुटपाथ पर डालते हैं, तो इसे पिघलने में कुछ समय लगता है। आइस क्यूब जितना बड़ा होता है, पिघलने में उतना ही ज्यादा समय लगता है। उसी तरह से समुद्र का स्तर का साफ़ संबंध महासागर के हिमनद और उसकी बर्फ की चादरों का प्रमुख योगदान है। उन्होंने कहा कि समुद्र के बढ़ते स्तर से तटीय पारिस्थितिकी तंत्र और दुनिया भर के सैकड़ों मिलियन लोगों की जीविका के लिए खतरा बन सकता है, जो पृथ्वी के तटों के साथ रहते हैं और काम करते हैं।
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