नूंह दंगों के पीड़ित मुस्लिम..! सीएम ममता ने TMC नेता समीरुल इस्लाम को सांत्वना देने भेजा, जानें हिंसा की सच्चाई ?
नूंह दंगों के पीड़ित मुस्लिम..! सीएम ममता ने TMC नेता समीरुल इस्लाम को सांत्वना देने भेजा, जानें हिंसा की सच्चाई ?
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मेवात: 31 जुलाई को नूंह में जलाभिषेक यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं पर हमले के बाद, तृणमूल कांग्रेस (TMC) सुप्रीमो और सीएम ममता बनर्जी ने बड़ा कदम उठाया है। एक बड़ी योजना के तहत, सीएम ममता ने हाल ही में अपनी पार्टी के नए राज्यसभा सदस्य समीरुल इस्लाम को हरियाणा के मुस्लिम बहुल नूंह जिले में भेजा है। इसे स्थानीय लोगों, विशेषकर मुस्लिम समुदाय की दुर्दशा को दूर करने के प्रयास के रूप में प्रस्तुत किया गया था। बता दें कि, TMC के नए राज्यसभा सदस्य समीरुल इस्लाम पश्चिम बंगाल प्रवासी श्रमिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। अपनी यात्रा के बारे में उन्होंने दावा किया कि उन्होंने मुस्लिम मौलवियों और विभिन्न राज्यों के प्रवासी श्रमिकों सहित कम से कम 100 लोगों से मुलाकात की। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने नूंह में कई स्थानों का दौरा किया।

रिपोर्ट के अनुसार, इस्लाम ने दावा किया कि वह बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के आदेश पर नूंह आए थे। उन्होंने कहा कि, 'मैं हमारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश के बाद नूंह आया, जो वास्तव में प्रवासी मजदूरों, विशेषकर मुसलमानों की दुर्दशा के बारे में चिंतित हैं, जिनकी रातों की नींद हराम हो रही हैं। प्रवासी समुदाय अभी भी दहशत में है। मेरे माध्यम से, उन्होंने मुख्यमंत्री को एक अनुरोध भेजा और उनसे उनके साथ खड़े होने का आग्रह किया।' अपनी नूंह यात्रा के बाद, उन्हें दिल्ली से लौटने के तुरंत बाद ममता बनर्जी को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, एक TMC प्रतिनिधि ने तर्क दिया कि समीरुल को नूंह भेजना अल्पसंख्यक समुदायों को एक आरामदायक संदेश भेजने की ममता बनर्जी की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था, जिन्हें मुख्य रूप से उनका वोट बैंक माना जाता है।

ध्यान रहे कि, जब राजनेता उन क्षेत्रों का दौरा करते हैं, जहां दंगे हुए हैं और किसी आसान लक्ष्य पर उंगली उठाते हैं, तो उनका वास्तविक लक्ष्य, गलत काम को माफ करना, इसे कम महत्वपूर्ण दिखाना और दोष मढ़ना हो सकता है। ये सब यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि वे अपने मतदाताओं के समूह का समर्थन न खो दें। इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि नूंह हिंसा से पहले, जिसके बारे में कहा गया था कि यह किसी बात की प्रतिक्रिया में अचानक घटित हुई थी, इस्लामवादी मान्यताओं से जुड़े कई सोशल मीडिया अकाउंट वास्तव में ऐसा होने से पहले हफ्तों तक इसी तरह की हिंसक घटनाओं की योजना बना रहे थे।

लेकिन, मतदाताओं के एक विशेष समूह पर जीत हासिल करने वाली कहानी बताने के लिए, अराजकता का एक बहुत ही सरलीकृत और साफ-सुथरा संस्करण फैलाया जा रहा है। स्थानीय मुस्लिम समुदाय को सांत्वना देने के लिए की जाने वाली यात्राएँ इस योजना में फिट बैठती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उनका उद्देश्य हमारे देखने के तरीके को बदलना है कि किसे चोट लगी है और किसने परेशानी पैदा की है, यह सब एक विशिष्ट दृष्टिकोण से मेल खाता है।

नूंह शोभायात्रा पर किसने किया था हमला:-

31 जुलाई को सावन सोमवार के दिन हरियाणा के मेवात के नूंह में सैकड़ों मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने प्राचीन शिव मंदिर पर जल चढाने जा रही बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा में शामिल हिंदू श्रद्धालुओं पर हमला कर दिया था। दंगों के परिणामस्वरूप कम से कम छह लोग मारे गए थे, जिसमे दो होम गार्ड के जवान भी शामिल थे।  साथ ही दंगाइयों ने 80 से अधिक वाहनों में आग लगा दी थी, जिसमे पुलिस के वाहन भी शामिल थे। 

हिंसा के दौरान मौके पर तैनात ड्यूटी मजिस्ट्रेट अदीब हुसैन ने इसको लेकर एक FIR दर्ज कराई है। अपनी शिकायत में अदीब हुसैन (FIR of Nuh Violence) ने जानकारी दी है कि वह मैनेजिंग ऑफिसर ओमबीर सिंह के साथ ड्यूटी पर मौजूद थे। इसी बीच एक समुदाय के 400-500 दंगाइयों ने श्रद्धालुओं और पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाज़ी और अवैध हथियारों से फायरिंग करना शुरू कर दिया। भीड़ का इरादा जान से मारने का था। दंगाइयों ने सरकारी और निजी वाहनों को आग के हवाले कर दिया। हमले के वक़्त हुसैन और ओमबीर सिंह नूहं बस स्टैंड पर मौजूद थे। उन्हें सूचना मिली थी कि सैकड़ों दंगाइयों ने 35-40 श्रद्धालुओं पर हमला कर उन्हें वार्ड क्रमांक 9 में स्थित राम मंदिर के अंदर बंधक बना लिया है।

अदीब हुसैन ने अपनी शिकायत (FIR of Nuh Violence) में बताया है कि दंगाई, श्रद्धालुओं को राम मंदिर परिसर से बाहर नहीं निकलने दे रहे थे। जब वे (हुसैन) मौके पहुँचे, तो 400-500 दंगाइयों ने लाठी, डंडे, पत्थर और अवैध हथियारों के साथ उन्हें मारने के लिए उन पर फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान अदीब हुसैन ने ओमबीर सिंह व अन्य पुलिस अधिकारियों को दंगाइयों को तितर-बितर करने के लिए उचित बल का इस्तेमाल करने का आदेश दिया। इसमें उन्हें सफलता भी मिली। दंगाई वहां से भागे। जिसके बाद पुलिस बल ने किसी तरह बंधक बने श्रद्धालुओं को वहां से मुक्त कराया। इससे स्पष्ट पता चलता है कि, ममता बनर्जी, जिन्हे पीड़ित बताकर उनके साथ खड़े होने का दावा कर रहीं हैं, असल में हमलावर उसी पक्ष से थे, वहीं जो असल में पीड़ित थे, उनको सांत्वना देने वाला तो कोई है ही नहीं। यही है वोट पॉलिटिक्स, जहाँ एकमुश्त वोट करने वालों को हर पार्टी अपनी तरफ रखना चाहती है, ताकि चुनावों में उसकी फसल काट सके। फिर चाहे इसके लिए तथ्यों को, सच्चाई को, लोगों के हित को और राष्ट्र की सुरक्षा के साथ कैसा भी खिलवाड़ क्यों न करना पड़े ?

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