मप्र में प्रतिदिन 330 बच्चे शुरू करते हैं तंबाकू सेवन
मप्र में प्रतिदिन 330 बच्चे शुरू करते हैं तंबाकू सेवन
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ग्वालियर : मध्यप्रदेश में तंबाकू व इससे निर्मित अन्य उत्पादों का सेवन करने से हर वर्ष 66 हजार लोग जान गंवा रहे हैं। सच तो यह है कि राज्य में प्रतिदिन 330 से अधिक बच्चे तंबाकू सेवन की शुरुआत करते हैं। यह खुलासा देशव्यापी तंबाकू रोधी अभियान वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स और भारत सरकार के उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय ने किया है। वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स और भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से रविवार को आयोजित कार्यशाला में बताया गया कि शिक्षण संस्थाओं व सार्वजनिक स्थानों पर कोटपा अधिनियम (सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003) का पालन आवश्यक किए जाने से हर साल हजारों की संख्या में हो रही जनहानि को रोका जा सकता है। वहीं, दूसरी ओर तंबाकू से होने वाले रोगों के इलाज में प्रदेश पर आर्थिक भार भी बढ़ रहा है।कार्यशाला में बताया गया, विश्व स्वास्थ्य सगंठन, पीएचएफआई और भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2011 में तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों के सेवन से होने वाले कैंसर व अन्य बीमारियों के इलाज पर 1373 करोड़ रुपये का खर्च आया था।

इस अवसर पर 'वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स' की निदेशक आशिमा सरीन ने बताया, देश में 5500 बच्चे हर दिन तंबाकू सेवन की शुरुआत करते हैं और वयस्क होने की आयु से पहले ही तंबाकू के आदी हो जाते हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 330 से अधिक बच्चे तंबाकू सेवन शुरू करते है। इनमें से ज्यादातर को इसकी लत लग जाती है और इसे छोड़ने की सभावना पांच प्रतिशत ही होती है। बच्चों को तंबाकू के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए अहम कदम उठाए जाने बहुत जरूरी है। सरीन ने अध्ययन के आधार पर सामने आए तथ्यों का ब्योरा देते हुए बताया कि मध्य प्रदेश की 39़5 फीसदी वयस्क (15 वर्ष से अधिक) आबादी तंबाकू का किसी न किसी रूप में प्रयोग करती है, जिसमें 58.5 प्रतिशत पुरुष और 19 प्रतिशत महिलाएं हैं। प्रदेश की कुल आबादी का करीब 17 फीसदी हिस्सा धूम्रपान करता है। वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स की निदेशक ने यह भी बताया कि तंबाकू उपयोग के खतरों व बीमारियों को वैश्विक आपातकालीन (ग्लोबल इमरजेंसी) की श्रेणी में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 'फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर टोबैको कंट्रोल' की स्थापना की गई। यह एक अंर्तराष्ट्रीय संधि थी, जिस पर भारत सहित दुनियाभर के 178 देशों ने हस्ताक्षर किए। इसी संधि के पालन के लिए वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा कोटपा 2003 कानून (सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003) लागू किया, जिसके तहत तंबाकू व धूम्रपान उत्पादों पर रोक संभव हुई। 

राष्ट्रीय स्तर पर जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2800 लोग रोज तंबाकू सेवन से असमय मर जाते हैं और सालभर में करीब 10 लाख लोग मर जाते हैं। तंबाकू नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, शैक्षणिक संस्थाओं के 100 गज की दूरी में तंबाकू उत्पाद बेचने पर रोक, सार्वजनिक स्थानों पर रोक, विज्ञापन पर भी रोक का प्रावधान है। किशोर उम्र के जो लड़के-लड़कियां धूम्रपान करतें हैं, उनमें से ज्यादातर लोग तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति की औसत आयु धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति की तुलना में 22 से 26 प्रतिशत तक घट जाती है। वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स के संरक्षक व कैंसर सर्जन डॉ. गौरव अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों का सेवन करने वालों की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। इसके चलते प्रदेश में हर साल 66 हजार से अधिक लोग मर रहे हैं। वर्तमान में जो कैंसर के रोगी आ रहे हैं, उनमें 80 प्रतिशत लोगों में मुंह, गले और जीभ का कैंसर पाया जाता है। इसके साथ ही महिलाओं में स्तन कैंसर, बच्चेदानी के कैंसर की समस्या शामिल है। उन्होंने बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान (आईसीएमआर) की रिपोर्ट मे इस बात का खुलासा किया गया है कि पुरुषों में 50 प्रतिशत और स्त्रियों में 25 प्रतिशत कैंसर की वजह तंबाकू है। धुआं रहित तंबाकू उत्पाद में अधिक रासायनिक तत्व होते हैं। वही गुटका, खैनी, पान, सिगरेट के इस्तेमाल से मुंह का कैंसर हो सकता है।

वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण-भारत 2010 (जीएटीएस) के अनुसार, रोकी जा सकने मौतों एवं बीमारियों में सर्वाधिक मौतें एवं बीमारियां तंबाकू के सेवन से होती हैं। विश्व में प्रत्येक 10 में से एक वयस्क मौत के पीछे का कारण तंबाकू सेवन ही है। विश्व में प्रतिवर्ष 55 लाख लोगों की मौत तंबाकू के सेवन से होती है। कुल मौतों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन् 2050 तक दो अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे।तंबाकू मुक्त शिक्षण संस्थान अभियान के प्रदेश प्रभारी डासोमिल रस्तोगी ने कार्यशाला में बताया कि राज्य में मध्यप्रदेश चिकित्सा अधिकारी संघ व सरकार के साथ मिलकर अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत प्रदेश के शिक्षण संस्थानों को तंबाकू मुक्त करने के सकारात्मक प्रयास किए जा रहे हैं।उन्होंने बताया कि शिक्षण संस्थाओं को तंबाकू मुक्त बनाने के लिए कोटपा अधिनियम को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। कोटपा की धारा चार व छह का उल्लंघन करने वाले को 200 रुपये से दंडित किया जाता है और यदि शिक्षण संस्थान परिसर में किसी को धूम्रपान करते पाया गया और संबंधित शिक्षण संस्थान के प्राचार्य उसे नहीं रोक पाए तो संस्था प्रधान से भी जुर्माना वसूलने का प्रावधान है। तंबाकू व सिगरेट उत्पाद अधिनियम 2003 के तहत प्राचार्य और अध्यापकों को उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही का अधिकार है, जो परिसर में धूम्रपान या तंबाकू का सेवन करते पाए जाते हैं।

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