मूवी रिव्यू : बुढ़ापे की दहलीज़ पर परवान चढ़ते प्यार की नाटकीय कहानी
मूवी रिव्यू : बुढ़ापे की दहलीज़ पर परवान चढ़ते प्यार की नाटकीय कहानी
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मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी को विस्तृत रूप में परोसती हुई नज़र आई फिल्म फिल्म "अंग्रेजी में कहते हैं" . फिल्म में संजय मिश्रा, यशवंत बत्रा नाम के सरकारी कर्मचारी की भूमिका में है जिसके लिए सब कुछ ठीक चल रहा है. वही फिल्म में उनकी पत्नी के किरदार में एकवली खन्ना है जो एक विनम्र पत्नी है और एक विद्रोही बेटी प्रीती  है जो अपने पड़ोसी से प्यार करती है और अपनी मर्ज़ी से उससे शादी करती हैं. 

यह फिल्म गंगा-वाराणसी की पृष्ठभूमि में स्थापित है जिसमे बिना प्यार की शादी में महिलाओं की मार्मिक दुर्दशा और चुप्पी को दर्शाती है. फिल्म एक पारिवारिक नाटक है और एक मध्यम आयु वर्ग के जोड़े के बीच संबंधों को बदलने की रोचक कहानी का निष्पादन करता है. यह उस अहसास के बारे में बताता है कि कभी-कभी सिर्फ किसी से प्यार करना पर्याप्त नहीं होता है, बल्कि उसे व्यक्त करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है.

फिल्म की शुरुआत प्रभावशाली है,कम से कम पहले भाग के लिए सामग्री बहुत संबंधित है और इसका निष्पादन किसी भी महिला की दुर्दशा को दिखाता है जो एक प्रेमहीन विवाह में चुप्पी में पीड़ित है. लेकिन अंतराल के बाद पटकथा घूमने लगती है. फिल्म की इस दिलचस्प प्रेम कहानी को हरीश व्यास ने परदे पर चित्रित किया है. इस फिल्म में मुख्य कलाकार के रूप में संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, अंशुमन झा, बृजेंद्र कला, एकवली खन्ना और शिवानी रघुवंशी ने अभिनय ने किया है.

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