जम्मू कश्मीर में अब्दुल्लाह युग का अंत, महाराजा हरी सिंह की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित
जम्मू कश्मीर में अब्दुल्लाह युग का अंत, महाराजा हरी सिंह की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित
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श्रीनगर: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार ने 23 सितंबर को महाराजा हरि सिंह की जयंती के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश कि घोषणा कर दी है। सरकार का कहना है कि अब यह अवकाश प्रतिवर्ष रहेगा। इस बाबत जल्दी ही आधिकारिक नोटिस जारी कर दिया जाएगा। युवा राजपूत सभा, ट्रांसपोर्ट यूनियन सहित कई संगठनों के प्रतिनिधियों और नेताओं से मुलाकात के बाद उपराज्यपाल (LG) मनोज सिन्हा ने इसकी घोषणा की है। मनोज सिन्हा ने कहा कि, 'सरकार ने महाराजा हरि सिंह की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का निर्णय लिया है। महाराजा हरि सिंह महान शिक्षाविद, प्रगतिशील चिंतक, समाज सुधारक और उच्च आदर्शों वाले व्यक्ति थे। उनकी जयंती पर सार्वजनिक छुट्टी घोषित करना महाराजा की विरासत को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।'

इस फैसले के साथ ही जम्मू-कश्मीर में राजनीति का एक लंबा चक्र पूरा हो गया है और इतिहास खुद को दोहराता नज़र आ रहा है। 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद सरकार ने शेख अब्दुल्ला की जयंती और पुण्यतिथि पर घोषित सार्वजनिक अवकाशों को निरस्त कर दिया था। देश की स्वतंत्रता के दौर में महाराजा हरि सिंह और शेख अब्दुल्ला के बीच काफी मतभेद थे। यहां तक जम्मू-कश्मीर के विलय को लेकर देश के प्रथम पीएम जवाहर लाल नेहरू ने महाराजा हरी सिंह के सामने यह भी एक शर्त रखी थी कि आपको शासन शेख अब्दुल्ला को ट्रांसफर करना होगा। उस दौरान शेख अब्दुल्ला ने महाराजा के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ दिया था।

उल्लेखनीय है कि, जम्मू-कश्मीर के अंतिम महाराजा रहे हरि सिंह का जम्मू और लद्दाख की जनता काफी सम्मान करती है, जबकि कश्मीर मुस्लिम बहुल होने के कारण शेख अब्दुल्ला का समर्थक रहा है। ऐसे में दोनों हस्तियों के सम्मान का मुद्दा जम्मू और कश्मीर के बीच की राजनीति का भी हिस्सा रहे हैं। इसलिए सरकार का यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि शेख अब्दुल्ला पर अवकाशों को रद्द करने और महाराजा सिंह के नाम पर सरकारी छुट्टी घोषित करने के फैसले से जम्मू कश्मीर की राष्ट्रवादी जनता खुश होगी। 

इस बीच महाराजा हरि सिंह के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह ने भी मोदी सरकार के इस फैसले की प्रशंसा की है। इसके साथ ही कर्ण सिंह ने कांग्रेस छोड़ने के भी संकेत दिए हैं। शुक्रवार को उन्होंने कहा कि, 'मैंने 1967 में कांग्रेस की सदस्यता ली थी। मगर, 8 से 10 वर्षों से मैं संसद का सदस्य नहीं हूं। वर्किंग कमिटी से भी मुझे बाहर कर दिया गया। हां, मैं कांग्रेस में हूं, मगर मेरा कोई संपर्क नहीं है। कोई मुझसे किसी भी चीज के लिए बात नहीं करता। मैं अपना काम करता हूं। मेरे पार्टी से रिश्ते शून्य हो गए हैं।'

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