'50-100 सालों में मुस्लिम शासन आ जाएगा, फिर राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बना दी जाएगी..'
'50-100 सालों में मुस्लिम शासन आ जाएगा, फिर राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बना दी जाएगी..'
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नई दिल्ली: हर बात में लोकतंत्र, संविधान और कानून की दुहाई देने वाले कट्टरपंथी, भारत की सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद हो रहे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को पचा नहीं पा रहे हैं। वे आए दिन धमकी देते रहते हैं कि अयोध्या में मस्जिद थी और आगे भी रहेगी। अब एक मौलाना ने इस संबंध में बयान दिया है, उन्होंने कहा है कि 100 वर्षों के अंदर भारत में मुस्लिमों का शासन आते ही राम मंदिर की जगह मस्जिद बना दी जाएगी।

ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के प्रमुख मौलाना साजिद रशीदी का ये बयान भारत की कानून-व्यवस्था को सीधी चुनौती है। मौलाना ने कहा है कि 50-100 वर्षों में भारत में मुस्लिम शासन के आने पर अयोध्या के राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई जा सकती है। मुस्लिमों की आने वाली नस्लें इसको लेकर खामोश नहीं रहेंगी। मौलाना रशीदी ने कहा है कि, 'आज मुसलमान खामोश है। मेरी आने वाली नस्ल, मेरा बेटा, उसका बेटा, उसका पोता, 50-100 वर्षों के बाद एक इतिहास उनके सामने आएगा कि हमारी मस्जिद को तोड़कर मंदिर का निर्माण कर दिया गया। उस समय हो सकता है कि कोई मुस्लिम शासक हो, कोई मुस्लिम जज हो या मुस्लिम शासन आ जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता है कि क्या बदलाव हो जाए, तो क्या उस हिस्ट्री की बुनियाद पर इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई जाएगी? बिल्कुल बनाई जाएगी।'

मीडिया से बात करते हुए मौलाना ने कहा है कि इस देश का एक इतिहास लिखा जाएगा और ये लिखा जाएगा कि 1992 में बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया और उसके बाद में उस समय के प्रधानमंत्री ने जाकर राम मंदिर की आधारशीला रखी थी, जो कि संविधान के बिल्कुल खिलाफ था। हालाँकि, टीवी डिबेट के दौरान मुस्लिम मौलाना रशीदी अपने बयान को व्यक्तिगत बताकर उसके खतरनाक इरादों की गंभीरता को कम करने की कोशिश कर रहे थे। हालाँकि, मौलाना के बयान के बाद अभी एक भी मुस्लिम विद्वान ने उनके बयान की निंदा नहीं की है। सोचने वाली बात ये भी है कि, ये मौलाना जिस मुस्लिम शासन की बात कर रहे हैं, जब मुग़ल काल में वो शासन रहा होगा, तो कितने मंदिर तोड़े गए होंगे, कितने गैर-मुस्लिमों का खून बहाया गया होगा, सिख गुरुओं के सिर कलम कर दिए गए, नन्हे साहिबजादों को दीवारों में चुनवा दिया गया, ये सब बातें इतिहास में दर्ज हैं। ये सब अत्याचार केवल इसलिए किए गए क्योंकि उनका धर्म अलग था

बता दें कि, ये सोच केवल साजिद रशीदी की नहीं है, कई मुस्लिम नेताओं ने ऐसा ही बयान दिया है। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तो कई बार कहा है कि ‘अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी। इशांअल्लाह’। ओवैसी कई बार ये भी कह चुके हैं कि मुस्लिम अपनी आने वाली नस्लों को बताएँगे कि वहाँ मस्जिद को शहीद करके मंदिर बनाया गया था। ओवैसी जब मंच से खड़े होकर, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध बातें करती हैं तो वहां मौजूद मुस्लिम भीड़ नारेबाजी करके उनका समर्थन करती है। कोई एक मुस्लिम बुद्धिजीवी, कानून-संविधान की दुहाई देने वाले ओवैसी को ये नहीं समझाता कि, तमाम दलीलें और सबूत देखने के बाद ही तो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है। यही नहीं, ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन भी 15 मिनट पुलिस हटाने पर देश की 100 करोड़ आबादी को सबक सिखाने की बात करते हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि अकबरुद्दीन किन 100 करोड़ लोगों की बात कर रहे थे। 

हाल ही में, 6 दिसंबर 2022 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के छात्र नेता मोहम्मद फरीद ने ‘काला दिवस’ के तौर पर मनाते हुए मार्च निकाला था। इसमें स्टूडेंट्स ने हाथों में पोस्टर ले रखे थे, जिसमें लिखा हुआ था कि, ‘जब अरजे खुदा के काब से, सब बुत उतरवाए जाएँगे’। यानी सारी मूर्तियां तोड़ीं जाएंगी।  इस दौरान छात्र कहते रहे कि ‘बाबरी मस्जिद अभी जिंदा है। मस्जिद वहीं थी, वहीं है और इंशाअल्लाह आगे भी वहीं रहेगी’। इससे यह स्पष्ट जाहिर होता है कि मौलाना साजिद रशीदी वही बात कह रहे हैं, जो मुस्लिमों के नाम पर सियासत करने वाले नेता असदुद्दीन कह रहे हैं और वही बातें AMU में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्र कह रहे हैं। इसलिए इसे केवल एक व्यक्ति का निजी बयान कहकर टाल देना, देश को खतरे में डालना ही होगा। इसके पीछे कुछ गहरी साजिश हो सकती है, जैसी कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) ने बना रखी है, वर्ष 2047 तक भारत को इस्लामी मुल्क बनाने की। 

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