बीजेपी ने आडवाणी को फिर नकारा
बीजेपी ने आडवाणी को फिर नकारा
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नई दिल्ली : देश की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी में मौजूदा नेतृत्व और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के बीच तनाव साफ़ दिखाई दे रहा है. आपातकाल की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर पार्टी समर्थित श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में आडवाणी उपस्तिथ नहीं थे. एक वक़्त था जब अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बीजेपी के दिग्गज नेताओं की सूची में शुमार और इमर्जेंसी कानून के तहत 25 जून 1975 को पहले गिरफ्तार होने वाले नेताओं में प्रमुख आडवाणी बीजेपी के हर मुख्य कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति निश्चित होती थी, लेकिन इस वर्ष कुछ अलग ही परिदृशय दिखाई दे रहा है. 

इस कार्यक्रम में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता का कार्य किया. वहां पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता वी के मल्होत्रा और दूसरे पदाधिकारी उपस्तिथ थे. कार्यक्रम वाले दिन आडवाणी के एक करीबी ने बोला, 'हमें ऐसे किसी कार्यक्रम की कोई सूचना नहीं मिली है. हमें नहीं पता कि हम आमंत्रित है अथवा नहीं. 

एसपी मुखर्जी फाउंडेशन के संस्थापकों में एक बीजेपी के उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने एक समाचार पत्र से चर्चा के दौरान कहा कि आडवाणीजी को निमंत्रण नहीं दिया गया होगा, ऐसा संभव नहीं है. हालांकि सहस्रबुद्धे ने कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी नहीं प्रदान की, पर यह आवश्यक है कि कार्यक्रम की छोटी-मोटी चीजों से उनका कोई सम्बन्ध नहीं था. 

कार्यक्रम में आडवाणी की अनुपस्तिथि इसलिए महत्व रखती है कि कुख्यात मीसा यानी मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्यॉरिटी ऐक्ट अंतर्गत गिरफ्तार किए गए संघ के लगभग सभी नेताओं को निमंत्रण भेजा गया था और उनको कार्यक्रम में शॉल देकर सम्मान भी दिया गया. कार्यक्रम आपातकाल के दौरान मीसा के अंतर्गत जेल  गए राजनेताओ को सम्मानित किया गया था, लेकिन उसमें संघ के सबसे जाने माने कैदी को ही नकार दिया गया. 

ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब पार्टी के चर्चित नेता को ऐसे किसी कार्यक्रम में नही बुलाया गया. पहली बार दिसंबर में पार्टी के संस्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भी आडवाणी को आमंत्रित नहीं किया गया था. उस कार्यक्रम में लम्बे समय से पार्टी को अपनी सेवा प्रदान कर रहे वी के मल्होत्रा को सम्मानित किया गया था.

अमित शाह ने इस अवसर पर उपस्थित समूह को संबोधित करते हुए बोला कि किसी व्यक्ति विशेष की अपेक्षा  विचारधारा को वोट देकर दोबारा आपातकाल की स्थिति को टाला जा सकता है. शाह ने कहा, 'अगर आप किसी व्यक्ति को वोट देते हैं तो आप आपातकाल की राह साफ करते हैं लेकिन विचारधारा को चुनने पर ऐसा नहीं होगा. आपातकाल की प्रमुख वजह विरोध के प्रति असहिष्णुता थी. 

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