जानिए कैसे हुई थी हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुरुआत
जानिए कैसे हुई थी हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुरुआत
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आपने अक्सर हिंदी सिनेमा में कुछ युवा लड़कियों और लड़कों को हाथ में माईक और माईक पर लगे चैनल के पहचान स्टिकर या आईडी को लगे हुए किसी मामले में कुछ बोलने के दृश्य देखे होंगे। यह काफी प्रभावी लगता है। इन कलाकारों को इस तरह से मीडिया का महिमा मंडन करना आपको रोमांचित कर देता है। जी हां, पहले जहां केवल प्रकाशकीय माध्यम अर्थात् प्रिंट मीडिया ही अस्तित्व में था और रेडियो के माध्यम से आकाशवाणी से समाचार प्रकाशित होते थे वहीं अब इसका आकार प्रकार बदल गया है। अब तो सूचना संवहन का दौर है। सूचना और समाचार प्रसारित करने वाले कई माध्यम हैं।

इनमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का दायरा बढ़ गया है। इसी के साथ इलेक्ट्रॉनिक जगत ने डिजीटल युग में प्रवेश कर लिया है। जिसके कारण लोगों को मोबाईल पर ही जानकारी मिल जाती है यही नहीं लोग इंटरनेट के माध्यम से जानकारियां प्राप्त कर लेते हैं। वर्तमान में कई ऐसे न्यूज़ पोर्टल हैं जो कि अपने समाचारों का प्रसारण इंटरनेट पर करते हैं। हालांकि इस माध्यम में फिलहाल विश्वसनीयता कम है। मगर मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है के क्षेत्र में इसके आने से एक नए दौर का प्रारंभ हो गया है।
 
यदि हम भारत में मीडिया के प्रारंभ की बात करें तो इसका प्रादुर्भाव यूं तो अतिप्राचीनकाल में नारद मुनि के संवाद और फिर राजा महाराजाओं द्वारा अपने राज्यों में चस्पा की जाने वाली जानकारियों के तौर पर हुआ लेकिन जिसे हम आधुनिक दौर में प्रिंट मीडिया की शुरूआत के साथ देख सकते हैं वह अंग्रेजों और क्रांतिकारियों द्वारा लाए जाने वाले पेंफलेट्स से माना जाता है। इस दौर में क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश राज व्यवस्था का विरोध कर नवोन्मेष किया। तो इसी के साथ कुछ सामाजिक व्यवस्था को लेकर भी जनजागृति जगाई गई। ऐसे समय में पत्रकारिता एक मिशन था। जिसमें राष्ट्रजागरण और समाजवाद का पुट नज़र आता था। मगर इसके बाद मीडिया ने पेशेवर रूख अपना लिया। दरअसल इस मामले में मीडिया को पूरी तरह से गलत ठहराना ठीक नहीं है। क्योंकि उस दौर में छापेखाने खोले जाना आसान थे।

फिर क्रांति के लिए कई छापेखाने थे। मगर आधुनिक दौर में प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक बड़ी पूंजी का निवेश चाहिए। अब समाचारपत्र संस्थानों में प्रकाशित होते हैं तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के स्थानों को मीडिया हाउस कहा जाने लगा है। जहां पर एक बड़ी पूंजी खपानी होती है। ऐसे में इनका प्रबंधन और संचालन उद्योगपतियों के हाथों में आ जाता है। जब बड़े पैमाने पर पूंजी का वहन इन संस्थानों को चलाने के लिए लग जाता है तो उद्योगपति इन संस्थानों से अपने हित और पूंजी की दुगनी वापसी से जोड़ लेते हैं। बता दें कि 30 मई को हिन्दुस्तान में हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। 1826 ई. का यह वही दिन था, जब पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से पहले हिन्दी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया था। 'उदन्त मार्तण्ड' नाम उस वक़्त की सामाजिक परिस्थितियों का संकेतक था, जिसका अर्थ है- 'समाचार सूर्य'। भारत में पत्रकारिता का आगाज़ पंडित युगल किशोर शुक्ल ने ही की थी। 

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