सुप्रीम कोर्ट : 12 वर्षीय बच्ची के हित को देखते हुए अदालत ने सुनाया इतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट : 12 वर्षीय बच्ची के हित को देखते हुए अदालत ने सुनाया इतिहासिक फैसला
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भारत की सर्वोच्च अदालत सूप्रीम कोर्ट ने एक अनूठा फैसला सुनाते हुए कहा कि बात यदि बच्चे की भलाई या उसके हित की हो तो किसी विधान, प्रक्रिया या मिसाल को मानना जरूरी नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि बच्चे का हित सर्वोपरि होता है. जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने पति-पत्नी के एक मामले में 12 वर्षीय बच्ची को पिता की कस्टडी में देने का आदेश दिया. पीठ ने बच्ची की मां के उस आरोप को खारिज कर दिया कि बच्ची का पिता उसके साथ छेड़छाड़ करता था. मां का कहना था कि बच्ची को पिता के साथ रहने देने की इजाजत देना खतरे से खाली नहीं है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि मामले की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने बच्ची व उसके माता-पिता से बातचीत के बाद अपने फैसले में कहा, हमने व्यक्तिगत तौर पर बच्ची व उसके माता-पिता से बातचीत की. हमारा मानना है कि नाबालिग बच्ची इस बात से भलीभांति अवगत है और निश्चित रूप से वह अपना मत देने की स्थिति में है कि वह किसके साथ रहना चाहती है और कहां उसकी भलाई है. पीठ ने पाया कि बच्ची सातवीं कक्षा में पढ़ती है. उसने पिता से लगाव की बात कही और साफ तौर पर पिता के साथ रहने की इच्छा जताई. 

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अगर बात करें इस मामले की तो पिता न केवल खानपान, शिक्षा आदि का ध्यान रखते थे, बल्कि उसके स्कूल के प्रोजेक्ट व गतिविधियों में सहयोग करते थे. पीठ ने इस मामले में 2008 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें बच्चे की सहूलियत, संतुष्टि, नैतिक व शारीरिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और अनुकूल वातावरण को तवज्जो दी गई थी.सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की एक अदालत द्वारा बच्ची की कस्टडी पिता को देने और मां को बच्ची से मिलने की इजाजत देने के आदेश को सही ठहराया. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मां की याचिका को खारिज करते हुए तीन काउंसलर की रिपोर्ट पर भरोसा किया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्ची को पिता का साथ पसंद है.हाईकोर्ट ने मां द्वारा मुहैया कराई डीवीडी को देखने पर पाया कि वह पिता के बच्ची से छेड़छाड़ के दावे की तस्दीक नहीं करती.

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