'मैंने मंदिर में जाने से इंकार कर दिया..', उदयनिधि के बाद अब कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने इस प्रथा को कहा 'अमानवीय'
'मैंने मंदिर में जाने से इंकार कर दिया..', उदयनिधि के बाद अब कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने इस प्रथा को कहा 'अमानवीय'
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बैंगलोर: इस समय में 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए बनाए गए 26 विपक्षी दलों का गठबंधन I।N।D।I।A। को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन की "सनातन धर्म को मिटाओ" टिप्पणी पर चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, इसी बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धारमैया ने हाल ही में यह कहकर एक और विवाद खड़ा कर दिया कि उन्होंने केरल के एक मंदिर में प्रवेश करने से इंकार कर दिया था, जब उनसे अपना शर्ट उतारने के लिए कहा गया था। 

दरअसल, कांग्रेस नेता सिद्धारमैया, समाज सुधारक नारायण गुरु की 169वीं जयंती मनाने के लिए बेंगलुरु में एक कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे।  इस दौरान उन्होंने कहा कि, 'एक बार, मैं केरल के एक मंदिर में गया, उन्होंने मुझे अपनी शर्ट उतारकर प्रवेश करने के लिए कहा। मैंने मंदिर में प्रवेश करने से इनकार कर दिया और उनसे कहा कि मैं बाहर से प्रार्थना करूंगा।' सिद्धारमैया ने आरोप लगाया कि, उन्होंने (मंदिर प्रबंधन ने) हर किसी को अपनी शर्ट उतारने के लिए नहीं कहा, लेकिन सिर्फ कुछ को कहा। कर्नाटक सीएम बोले कि, ''यह एक अमानवीय प्रथा है। भगवान के सामने हर कोई बराबर है।" 

बता दें कि, कई दक्षिण भारतीय मंदिरों में, पुरुषों के लिए 'अंगवस्त्र', एक शॉल जैसा कपड़ा, (जिसे कंधे पर पहना जा सकता है) को पहनकर मंदिर में प्रवेश करने की परम्परा है और ये सभी पुरुष श्रद्धालुओं के लिए समान है। उदाहरण के तौर पर केरल के त्रिवेंद्रम में स्थित विश्व प्रसिद्ध भगवान विष्णु का पद्मनाभन मंदिर, यहाँ पुरुष शर्ट और पेंट में मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते। उन्हें पेंट की जगह धोती पहननी होती है और शर्ट की जगह अंगवस्त्रम लपेटना होता है। हालाँकि, ये स्वच्छ वस्त्र मंदिर ही श्रद्धालुओं को प्रदान करता है। अब चूँकि, सिद्धारमैया पहले से ही धोती तो पहनते ही हैं, इसलिए उन्हें केवल शर्ट की जगह अंगवस्त्र पहनने के लिए कहा गया, जो उन्हें बुरा लगा और उन्होंने मंदिर में जाने से ही इंकार कर दिया सिद्धारमैया को यह प्रथा और परंपरा अमानवीय लग सकती है, लेकिन ये केरल के लोगों के लिए आम बात है और वे इसकी पूरी तरह पालना करते हैं। 

मंदिर में जाना न जाना सिद्धारमैया का अपना निजी फैसला हो सकता है, लेकिन जनता के सामने उस मंदिर की प्राचीन प्रथा को 'अमानवीय' बताकर वे क्या सन्देश देना चाहते हैं ? क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया भी उदयनिधि के नक्शेकदम पर कदम बढ़ा चुके हैं ? वैसे भी कार्ति चिदंबरम, लक्ष्मी रामचंद्रन और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियंक खड़गे, उदयनिधि के सनातन धर्म को पूरी तरह मिटाने के बयान का समर्थन कर चुके हैं। ऐसे में सिद्धारमैया के भी वही विचार हों, तो कोई आश्चर्य न होगा। यहाँ गौर करें कि, जातिवाद मिटाने की बात प्रधानमंत्री मोदी, RSS चीफ मोहन भागवत से लेकर कई दलों के कई नेता करते रहे हैं, इसे समाज सुधार की कोशिश के रूप में देखा जाता है और कोई विवाद नहीं होता, लेकिन जब पूरे धर्म का ही नाश करने की बात की जाए और नेतागण उसका समर्थन भी करें, तो ये निश्चित ही नफरत फ़ैलाने वाली बात है। यही कारण है कि, कई पूर्व जजों, आईएएस अधिकारीयों (262 गणमान्य नागरिकों)  ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उदयनिधि के बयान पर स्वतः संज्ञान लेने और कार्रवाई करने का आग्रह किया है। 

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