2050 तक हिंदुकुश में 5 डिग्री बढ़ जाएगा पारा
2050 तक हिंदुकुश में 5 डिग्री बढ़ जाएगा पारा
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नई दिल्ली : अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने शुक्रवार को कहा कि हिमालय की पर्वत श्रृंखला हिंदु कुश में अगले 35 सालों में तापमान एक से दो डिग्री तक और कुछ स्थानों पर चार से पांच डिग्री तक बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि बहुत अधिक बारिश पहले की तुलना में कम होगी लेकिन जितनी भी होगी, अधिक घातक होगी। 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस मनााया जाता है। तीन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा जारी मैपिंग एन अनसर्टेन फ्यूचर एटलस आफ क्लाइमेट चेंज एंड वाटर इन फाइव क्रूशल वाटर बेसिन्स इन द हिंदु कुश हिमालयाज में इन चिंताजनक तथ्यों को पेश किया है। ये संस्थाएं हैं इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउनटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी), नार्वे की संस्था जीआरआईडी-अरेंदल और सेंटर फार इंटरनेशनल क्लाइमेट एंड एन्वायरमेंट रिसर्च-ओस्लो (सीआईसीईआरओ)।

अपनी तरह के इस पहले एटलस में पांच बड़े नदी बेसिन सिंध, ब्रहमपुत्र, गंगा, सलवीन और मेकांग- में जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों पर पड़ने वाले असर का समग्र क्षेत्रीय अध्ययन पेश किया गया है। इस एटलस को शुक्रवार को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के मौके पर पेरिस में पर्यावरण सम्मेलन से इतर पेश किया गया। काठमांडू स्थित आईसीआईएमओडी के मुख्य निदेशक डेविड मोल्डेन ने कहा, यह एटलस हिंदु कुश हिमालय में जल संसाधनों की स्थिति और इसके भविष्य पर प्रकाश डालता है। दुनिया के सबसे निर्धन क्षेत्रों में से एक हिंदु कुश क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के मामले में सर्वाधिक नाजुक क्षेत्रों में शामिल है।

उन्होंने कहा कि एटलस में विज्ञान आधारित सूचनाएं दी गई हैं। इनकी मदद से क्षेत्र में स्थिति को सुधारने की दिशा में जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं। इसमें नक्शों और ग्राफिक्स के जरिए बताया गया है कि क्षेत्र में किस तरह से अभी जलवायु परिवर्तन हो रहा है और भविष्य में होगा। और, यह भी बताया गया है कि इसके कितने गंभीर नतीजे स्थानीय आबादी के साथ साथ नीचे के इलाकों में बसी आबादी पर पड़ेंगे। 2050 तक बढ़ चुके तापमान की वजह से बर्फ पिघलने की मात्रा भी बढ़ेगी। इससे बारिश के पैटर्न पर असर पड़ेगा और इसका सबसे अधिक असर सिंधु बेसिन में दिखेगा। ग्लेशियर के सबसे अधिक पास की नीचे बसी आबादियां ग्लेशियर पर पड़ने वाले असर का शिकार होंगी।

हिंदु कुश हिमालय क्षेत्र में 21 करोड़ लोग रहते हैं और यहां से पूरे यूरोप महाद्वीप से भी कहीं अधिक लोगों को, एक अरब तीस करोड़ लोगों को पानी मिलता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मानसून के साथ-साथ बारिश के पैटर्न में बदलाव से मानसून अधिक लंबा और अधिक अनियमित हो जाएगा। तापमान और बारिश के पैटर्न में बदलाव से जलवायु से जुड़े कृषि, जल संसाधन और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर बेहद गंभीर प्रभाव पड़ेगा। बहुत अधिक या बहुत कम पानी वाली इस समस्या से निपटने के लिए एटलस में इलाके के देशों के बीच समन्वित रणनीति बनाने की सिफारिश की गई है।

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