अपराध को लगाम लगाने के लिए गहलोत सरकार का बड़ा कदम, पैरोल एक्ट में परिवर्तन करने की तैयारी
अपराध को लगाम लगाने के लिए गहलोत सरकार का बड़ा कदम, पैरोल एक्ट में परिवर्तन करने की तैयारी
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अपराधियों से सख्ती के साथ निपटने के लिए भारत की कई सरकारे विशेषतौर पर काम कर रही है. मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने माफिया को साफ करने का बीड़ा उठा रखा है. बता दे कि राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार अपराधियों से सख्ती के साथ निपटने के लिए नया पैरोल एक्ट तैयार करेगी.नये एक्ट को विधानसभा के आगामी सत्र में पारित कराया जाएगा. गृह विभाग के अधिकारियों ने विधि विशेषज्ञों एवं पुलिस महकमें के अफसरों के साथ मिलकर पैरोल एक्ट का ड्राफ्ट तैयार किया है.

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मीडिया​ रिपोर्ट के अनुसार नये पैरोल एक्ट में अपराधियों पर लगाम लगाने को लेकर कई अहम प्रावधान किए जा रहे हैं. इसके तहत जेल में यदि किसी कैदी के पास मोबाइल फोन भी मिलता है तो उसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में माना जाएगा. जेल में कैदी के पास मोबाइल फोन मिलने पर उसके खिलाफ जिला एवं सत्र न्यायालय में ट्रायल चलेगा. कैदी की जिला एवं सत्र न्यायालय से नीचे की अदालत में जमानत नहीं होगी. अब तक जेल में कैदी के पास मोबाइल फोन मिलने पर सिर्फ एफआईआर दर्ज होती है,लेकिन इसे संज्ञेय अपराध नहीं माना जाता है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि एक्ट के ड्राफ्ट में हत्या अथवा किसी अन्य गंभीर अपराध में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आरोपित को पैरोल की अवधि दो साल करने का प्रावधान किया जा रहा है.राज्य में गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीव स्वरूप और पुलिस महानिदेशक (जेल) एनआरके रेड्डी ने पैरोल एक्ट के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया है.नये पैराल एक्ट में संज्ञेय अपराधों को लेकर एक तरफ जहां कठोरता बरतने का प्रावधान किया जा रहा है,वहीं दूसरी तरफ कैदियों को कुछ राहत देने की भी मंशा जताई है. अब तक जिला मुख्यालयों पर कलेक्टरों की अध्यक्षता में गठित कमेटी किसी भी कैदी के पैराल संबंधित प्रार्थना-पत्र को खारिज कर देने पर उसकी आगे कहीं सुनवाई नहीं होती थी.लेकिन अब नये एक्ट में जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी द्वारा प्रार्थना-पत्र खारिज होने के बाद कैदी को एक और मौका दिया जाएगा है. वह संभागीय आयुक्त के समक्ष प्रार्थना-पत्र दे सकेगा. कैदियों के शारीरिक एवं स्वास्थ्य संबंधी बिंदुओं को भी नये एक्ट में जोड़ा जा रहा है.

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