कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार इस समय शिक्षक भर्ती घोटाले में घिरी हुई है, सरकार के पूर्व मंत्री और विधायक इस मामले में अरेस्ट हो चुके हैं. कोलकाता हाई कोर्ट ने रिश्वत लेकर दी गई कई नियुक्तियों को रद्द करने का भी आदेश दे दिया है. यहाँ तक कि, सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी तक इस घोटाले की आंच पहुँच गई है. इसी बीच डॉक्टरों की नियुक्ति को लेकर ममता सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले पर बवाल मच गया है.
दरअसल, सीएम बनर्जी ने तीन वर्षों के डिप्लोमा से डॉक्टर बनाने की घोषणा की है. हालाँकि, अब सीएम ममता अपने फैसले के बाद विवादों में घिरती नजर आ रही हैं. मेडिकल संगठनों और डॉक्टरों के संगठनों ने सीएम ममता के फैसले पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. डॉक्टरों के संगठनों ने सीएम ममता बनर्जी से पुछा है कि राज्य में डॉक्टरों की तादाद कम क्यों हैं? उन लोगों ने इस प्रकार के प्रस्ताव की निंदा की है.
बता दें कि इसके पहले भी राज्य की वामपंथी सरकार ने चार साल में डिप्लोमा से डॉक्टर नियुक्त करने का फैसला लिया था, मगर मेडिकल और डॉक्टर संगठनों के विरोध के चलते सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था. सर्विस डॉक्टर्स फोरम के कोषाध्यक्ष डॉ स्वपन विश्वास ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि सीएम बनर्जी द्वारा राज्य में सिविक पुलिस, पारा शिक्षक जैसे 3 वर्षीय डिप्लोमा डॉक्टर बनाने का प्रस्ताव निंदनीय है. उन्होंने कहा कि डॉक्टर के क्षेत्र में किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह नियुक्ति देने के गंभीर अंजाम होंगे.
उन्होंने आगे कहा कि हमारे बंगाल और देश में MBBS पास डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है. यह लगभग अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक तो है. सरकारी क्षेत्र में डॉक्टरों की कमी है और यह सरकार की नीतियों की वजह से है. सिविल पुलिस की तरह डिप्लोमा डॉक्टर नियुक्त करने के फैसले को चिकित्सा समाज कतई स्वीकार नहीं करेगा. वहीं, डॉक्टर एसोसिएशन के नेता मानस गुमटा ने इस डिप्लोमा में डॉक्टरेट के प्रस्ताव का जमकर विरोध किया. उन्होंने कहा कि, ‘डिप्लोमा मेडिसिन का सब्जेक्ट क्या होता है? क्या इसमें मेडिकल काउंसिल की मंजूरी है? हम यह नहीं जानते हैं.'
गुमटा ने आगे कहा कि वर्तमान में सरकारी और निजी दोनों मेडिकल कॉलेजों से हर साल तक़रीबन 4500 डॉक्टर उत्तीर्ण हो रहे हैं. MBBS यानी स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी नौकरी नहीं मिलने के कारण सड़कों पर उतरकर विरोध करते दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में यदि यह कहा जाए कि डॉक्टरों की कमी है और इसलिए डिप्लोमा डॉक्टर या हाफ डॉक्टर लाए जा रहे हैं, तो सरकार के इस मकसद पर सवाल उठना स्वाभाविक है.
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