नई दिल्ली: संकट के इस दौर में कोरोना संक्रमण का ‘डेल्टा’ वेरिएंट’ ब्रेकथ्रू’ इन्फेक्शंस के कारण बन रहा है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें वैक्सीन की एक या दोनों डोज लग चुकी हों तथा उन्हें कोरोना हो जाए तो उसे ‘ब्रेकथ्रू’ इन्फेक्शन बोलते हैं। साउथ दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर ऐंड बायलरी साइंसेज में हेल्थकेयर वर्कर्स के मध्य ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन के कई केस सामने आए हैं। इनमें से अधिकतर को ‘डेल्टा’ वेरिएंट ने संक्रमित किया।
हॉस्पिटल के 1,800 कर्मियों का टीकाकरण 16 जनवरी से ही आरम्भ हो गया था। अप्रैल के अंत तक लगभग 1,600 को डोज लग चुकी थी। हॉस्पिटल के अफसरों ने बताया कि कोविशील्ड की डोज दिए जाने के बाद भी लगभग 10% कर्मचारी सकारात्मक टेस्ट हुए। डॉक्टर्स तथा नर्सेज में इन्फेक्शन के केस अधिक थे, जबकि शेष कर्मचारी में कम। फिर इन व्यक्तियों के स्वाब सैम्पल्स का जीनोमिक एनालिसिस किया गया तो ‘डेल्टा’ वेरिएंट की कारस्तानी पकड़ में आई।
वही सारे नमूनें इंस्टिट्यूट ऑफ जीनॉमिक्स ऐंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी में सीक्वेंस किए गए। डॉ राजेश पांडे तथा डॉ अनुराग अग्रवाल की टीम ने पाया कि 70% इन्फेक्शंस के पीछे डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) था। इस ‘चिंता वाला वेरिएंट’ बताया जा चुका है। मार्च के पश्चात् दिल्ली में मामलें बढ़ने के पीछे इसी को मुख्य कारण माना गया। इससे पूर्व ‘अल्फा’ तथा ‘कप्पा’ वेरिएंट्स के संक्रमण अधिक थे। ILBS के डायरेक्टर डॉ एसके सरीन ने बताया कि ‘डेल्टा’ वेरिएंट के चलते इतने अधिक ‘ब्रेकथ्रू’ इन्फेक्शंस होना चिंता की बात है। उन्होंने बताया, यह दिखाता है कि वेरिएंट्स वैक्सीन की बनाई ऐंटीबॉडीज को धता बता सकते हैं तथा अभी जो टीका लगाया जा रहा हैं, वे शायद नए म्यूटंट स्ट्रेन्स से पर्याप्त सुरक्षा न दे पाएं।
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