मिसाल: कालेज के चपरासी का बेटा भारत की फुटबॉल टीम में
मिसाल: कालेज के चपरासी का बेटा भारत की फुटबॉल टीम में
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फीफा वर्ल्ड कप का बुखार दुनिया पर चढ़ा हुआ है. फुटबॉल की दुनिया भारत के लिए फ़िलहाल दूर की कौड़ी ही नज़र आ रही है. कोशिशे जारी है और परिणाम भी आ रहे है मगर सफर अब भी लम्बा है. इस बीच उत्तर प्रदेश मुजफ्फरनगर जिले के भोपा से एक फुटबॉल खिलाड़ी नीशू कुमार ने पाने खेल के दम पर भारतीय नेशनल टीम में जगह बनाई है. भारतीय टीम का ये नया डिफेंडर अपनी मेहनत के दम पर इतने छति सी जगह से उस खेल में अपना नाम कर गया है जिसे मुल्क में कम ही खिलाड़ी खेल रहे है. उसके परिवार वालों का कहना है कि क्रिकेट के आगे फुटबॉल को यहां कोई नहीं जानता. हालांकि, बेटे के नेशनल टीम में सेलेक्ट होने पर परिवार वाले काफी खुश हैं.

बता दें कि नीशू एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. 21 साल के इस फुटबॉल खिलाड़ी के पिता एक कॉलेज में चपरासी थे. गरीबी और असुविधाओं के बावजूद नीशू ने फुटबॉल के प्रति अपने जुनून को कम नहीं होने दिया. नीशू कहते हैं, 'उन्होंने 5 साल की उम्र से ही फुटबॉल खेलना शुरू किया था. इसके बाद स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर की देख-रेख में उन्होंने प्रैक्टिस की.' आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के बाद उनके चेहरे पर गर्व भी साफ झलक रहा है.

नीशू के घरवाले बताते हैं कि उसे बचपन से ही फुटबॉल खेलने का शौक था. नेशनल टीम में शामिल होने के लिए उसने बहुत मेहनत की है. नीशू ने 2009 में चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी से अपने करियर की शुरुआत की थी. 2010 में चंडीगढ़ एकेडमी की तरफ से विदेश पर जाने वाले इस खिलाड़ी ने टीम के कप्तान होने का गौरव भी प्राप्त किया. 

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