धर्म की क्रूर परंपरा : यहां आज भी किया जाता है बच्चियों का दर्दनाक खतना, जाने क्यों
धर्म की क्रूर परंपरा : यहां आज भी किया जाता है बच्चियों का दर्दनाक खतना, जाने क्यों
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रिवाज और प्रथाओं के नाम पर अमानवीयता तो हम लगभग हर रोज़ ही देखते है. लेकिन आज हम जिसके बारे में बात कर रहे है. यह प्रथा आपको अंदर तक जंझकोर के रख देगी. हम बात कर रहे है "खतना" के बारे में. जी हाँ, खतना नाम की यह प्रथा ना केवल क्रूर है बल्कि साथ ही अमानवीय भी है. महज 5 से 8 वर्ष की छोटी बच्चियों के गुप्तांगो की सुन्नत की यह प्रथा आज मुस्लिम समुदाय की औरतों के लिये एक शाप बन गई है.

वैसे तो स्त्रियों के खतने का यह रिवाज अफ्रीकी देशों में है लेकिन इसका प्रचलन भारत के कुछ हिस्सों में भी देखने को मिल रहा है. जैसे अफ्रीका महाद्वीप के मिस्र, केन्या, यूगांडा, इरीट्रिया जैसे दर्जनों देशों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस प्रथा को महिलाओं के लिए एक शाप के रूप में इसलिए देखा जाता है क्योकि स्त्री खतना में जिस अंग को छील कर हटाया जाता है. दरअसल वही अंग स्त्री की मासिक धर्म और प्रसव पीड़ा को कम करने का काम करता है.

लेकिन इसके बावजूद आज भी यह प्रथा ऐसे ही चली आ रही है. आज भी खतना किए जाने पर बच्चियां कई महीनो तक असहनीय दर्द से छटपटाती रहती हैं. कई बच्चियों के जननांगों में इससे संक्रमण भी हो जाता है और इसके चलते उनकी मौत भी हो जाती है. इसके कारण लड़कियों को रक्त रिसाव, बाह्यचर्मिक पुटी, लगातार मूत्र बहना और जननांगीय बीमारियां, पुराना दर्द और प्रसूति संबंधित जटिलताएं उत्पन्न होने की पूरी-पूरी आशंका रहती है.

इसके कारण लड़कियां मासिक धर्म के दौरान बहुत दर्द महसूस करती हैं. यहाँ तक कि शादी के बाद पति से भी सेक्स करने में उनकी रूचि बहुत कम हो जाती है. यह इस कारण क्योकि उसे सेक्स के दौरान बहुत तकलीफ होती है और उसे कोई आनंद भी नहीं आता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट की बात करे तो आज दुनिया भर में लगभग 15 करोड़ महिलाएं इस प्रथा से पीड़ित हैं. हम तो इस प्रथा को लेकर यही कहना चाहेंगे कि सरकार को इसके खिलाफ जरुरी कदम उठाने चाहिए और इसपर रोक लगना चाहिए.

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