छठ पूजा और जल प्रदूषण
छठ पूजा और जल प्रदूषण
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छठ पूजा : आज से पूरे देश में छठ पूजा और व्रत की धूम मची हुई है. दिवाली पर छठ पूजा का विशेष महत्त्व माना जाता है और सम्पूर्ण धरती को ऊर्जा देने वाले सूर्य की उपासना की जाती है. मान्यताओं के अनुसार यह परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है. यह हिन्दू धर्म में महापर्व के रूप में मनाया जाता है. इस. छठ की शुरुआत सुबह उठ कर नहाये - खाये से शुरू होता है.

इस त्यौहार का बिहार में अत्यधिक महत्त्व माना जाता है और इस दिन स्नानादि के लिए पटना में 101 घाट तैयार किये गए हैं. वहीं दिल्ली में 568 घाटों को तैयार किया गया है. हालांकि यह तो भारतीय परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है और जिसे लोग पूरे श्रद्धा भाव से निभाते आ रहे हैं. नदी, तालाब और जलकुंड में डुबकी लगाना फिर सूर्य भगवान को अर्घ समर्पित करना. लेकिन यमुना नदी जिसमे हर साल करोड़ों श्रद्धालु डुबकी लगाकर भगवान सूर्य की उपासना करते हैं, वह आज इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि यदि उसमे कुछ देर के लिए भी हाथ डाल दिया जाए तो स्किन इन्फेक्शन का खतरा तक हो सकता है. ऐसे में श्रद्धालु उसी यमुना नदी में डुबकी लगा अपनी आस्था को साकार करते हुए सूर्य को अर्घ समर्पित करेंगे.

इस यमुना में डुबकी लगाने के लिए दूर-दूर से भक्तगण पहुंच रहे हैं. आलम यह है कि ट्रेनों में भीड़ के चलते लोगों को पैर रखने कि भी जगह नहीं है. हर साल होने वाले इस आयोजन में नदी-तालाबों का प्रदूषण स्तर बढ़ जाता है. हालांकि समय-समय पर सरकार द्वारा यमुना सफाई अभियान चलाया जाता है और पिछले 23 साल का अगर हम रिकॉर्ड खंगाले तो, इन 23 सालों में 3 एक्शन प्लान तैयार किये गए थे. जिन पर अब तक 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च भी किये जा चुके हैं, बावजूद इसके यमुना प्रदुषण रहित नहीं हो सकी. देश की राजधानी दिल्ली में यमुना नदी का प्रदुषण इस स्तर पर है की अगर उसमे कोई हाथ भी डाले तो उसे स्किन इन्फेक्शन हो जाए. ऐसे में छठ पूजा के लिए भक्तों को तकरीबन 1 घंटा इसी प्रदूषित पानी में खड़ा रहना पड़ेगा.

सरकार ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा के व्यापक इंतज़ाम किये हैं और इसी के साथ यमुना नदी से अलग स्थानों पर छोटे-छोटे तालाबों और जलाशयों का निर्माण भी कराया है ताकि भक्तों की आस्था और उनका स्वास्थ दोनों बरकार रह सकें. हर साल जल प्रदुषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा, लोगों द्वारा अपशिष्ट पदार्थों का नदी में बहाया जाना और कई अन्य कारणों से आज जल प्रदुषण इतना बढ़ गया है कि इसे पीने तो छोड़िये इसमें हाथ डालना तक मुश्किल है. ऐसे में यह सिर्फ सरकार का दायित्व नहीं अपितु हर नागरिक का कर्त्वय है कि जल को प्रदूषित रहित बनाने के लिए अपना योगदान दें. किसी भी प्रकार कि गंदगी को जलाशयों में न बहाएं. पूजा-स्नान कर अपनी भक्ति जरूर दिखाएँ लेकिन प्रकृति द्वारा दिए उपहार का भी ध्यान रखें, क्योंकि जल है तो कल है... आप सभी को छठ महापर्व की हार्दिक बधाई...

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