क्यों लगता है चंद्र ग्रहण, यहाँ जानिए पौराणिक कथा
क्यों लगता है चंद्र ग्रहण, यहाँ जानिए पौराणिक कथा
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आप सभी जानते ही होंगे हर साल चंद्र ग्रहण लगता है और यह पूर्णिमा के दिन ही होता है. ऐसे में कहा जाता है चंद्र ग्रहण के दिन देवी-देवताओं के दर्शन करना अशुभ होता है. जी दरअसल इस दिन मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं और तो और किसी भी तरह की पूजा नहीं की जाती है. अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं चंद्र ग्रहण की कथा जो इस साल 5 जुलाई को लगने वाला है.

पौराणिक कथा : समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों के साथ अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया. जब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया. लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया. देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया. इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन राहु ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया. इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं. इसलिए चंद्र ग्रहण होता है.

इसके अलावा कहा जाता है अवंति खंड की कथा में बताया गया है कि ब्रह्मा जी ने सिर को एक सर्प के शरीर से जोड़ दिया यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के सिर के जोड़ दिया जो केतु कहलाया. केवल इतना ही नहीं बल्कि पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और चंद्र देवता द्वारा स्वर्भानु की पोल खोले जाने के कारण राहु इन दोनों देवों का दुश्मन हो गए थे.

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