मास्टर वाटर प्लान का बड़ा घोटाला, बिना बने ही खर्च हो चुके 4 करोड़ रूपए
मास्टर वाटर प्लान का बड़ा घोटाला, बिना बने ही खर्च हो चुके 4 करोड़ रूपए
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रायपुर: राज्य बनने के पश्चात् अब तक छत्तीसगढ़ का मास्टर वाटर प्लान नहीं बन पाया है. वही यह प्लान पानी के प्रबंधन से जुड़ा हुआ है. इस प्लान की यह खबर आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि प्लान नहीं बना इससे ज्यादा गंभीर विषय यह है कि 2006 में प्लान के लिए दिल्ली की कंपनी को 4 करोड़ रुपए के अनुबंध के साथ लगाया गया था. वही कंपनी को 4 सितंबर 2008 तक प्लान शासन को सौंपना था. इसके लिए समय सीमा में ही कंपनी को पूरा भुगतान किया जा चुका था. बल्कि यही नहीं, इस वाटर प्लान की उच्चस्तरीय बैठकों पर लाखों रुपए लगाए जा चुके थे. कंपनी ने 12 साल के बाद भी रिपोर्ट आज तक जमा नहीं कराई है. दो साल पहले इस मामले की जांच के लिए आतंरिक कमेटी भी बिठाई जा चुकी थी. वही कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में पूरा गोलमाल उजागर भी किया, जबकि डेढ़ साल से यह रिपोर्ट भी दबी हुई पड़ी है.

वही इस वाटर प्लान की गहराई से अध्ययन में पता चला कि वाटर प्लान के लिए तकनीकी सलाहकार समिति की बैठकें 9 बार हो चुकी है. वही जल संसाधन विभाग में इसके लिए मास्टर प्लान सेल भी बनाया गया था, जो की अब अस्तित्व में नहीं है. वही 2018 में प्रदेश के सभी नदी-कछारों के एग्जीक्यूटिव इंजीनियरों से मास्टर वाटर प्लान पर तकनीकी सुझाव और बिंदुवार संशोधन मांगा गया था, पर अब तक किसी ने नहीं दिया. दिल्ली की कंपनी वैप्कोस को विभाग ने 8 साल बाद, 2014 में ब्लैकलिस्ट किया गया था. वही तब तक कंपनी को 3.75 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान हो चुका था. 2018 में एक बार वाटर फिर मास्टर वाटर प्लान के लिए इंजीनियरों सक्रिय किया गया. उसके पश्चात् से मामला फिर ठंडा हो गया. वही इस मामले पर कंपनी को कई रिमाइंडर भेजे गए थे परन्तु वहां से कोई जवाब नहीं मिला था.

जल संसाधन विभाग में 2006 में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर तथा मास्टर वाटर प्लान की टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी में नामित कुटारे ने बताया है कि कंपनी वैप्कोस ने विभाग को हमेशा से ही धोखे में रखा और किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं दिया है. टीएसी ने जितनी बार भी मास्टर प्लान में कमियां दिखाई लेकिन कंपनी ने किसी भी तरह का सुधार नहीं किया. वही कुटारे कुछ समय पहले इंजीनियर इन चीफ के पद से रिटायर हो चुके हैं. इस विषय पर विभाग ने सालभर पहले भी कंपनी से कहा था कि वे कंप्लायंस करें, परन्तु  यह भी नहीं हुआ. वही इसका पूरा मसला अब विभाग के अफसर ही बता सकते है.

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