'वन्दे मातरम्' के रचियता थे बंकिम बाबू, अध्यापक के डांटने पर छोड़ दिया था अंग्रेजी पढ़ना!
'वन्दे मातरम्' के रचियता थे बंकिम बाबू, अध्यापक के डांटने पर छोड़ दिया था अंग्रेजी पढ़ना!
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आज ही के दिन बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म हुआ था. ऐसे में आप सभी को बता दें कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय बंगला के एक बेहद सम्मानित साहित्यकार थे. बंग भूमि ने उन्हें साहित्यिक, भाषायी समृद्धि के साथ ही वह संवेदनात्मक दृष्टि दी, जिसके चलते वह न केवल बंगला के, बल्कि समूची भारतीय अस्मिता की प्रतीक समझी जाने वाली रचनाओं का सृजन कर पाए. जी दरअसल कई लोग उन्हें बंकिम बाबू कहते थे. वह बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार तो थे ही, दूसरी भाषाओं पर भी उनके लेखन का व्यापक प्रभाव पड़ा. इसी के साथ आज भी भारतीय जनमानस के बीच वह राष्ट्रीय गीत के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त 'वन्दे मातरम्' के रचयिता के रूप में जाने जाते हैं.

केवल इतना ही नहीं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 'वन्दे मातरम्' गीत क्रांतिकारियों की प्रेरणा का स्रोत तो था ही, आज भी राष्ट्रवादी इस पर गर्व करते हैं. जी दरअसल बंगला समाज, साहित्य और संस्कृति के उत्थान में सामाजिक, शैक्षिक आंदोलन से जुड़े विचारकों राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय और ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती आदि ने बेहतरीन किरदार निभाया था और इसी का असर पूरे देश की भाषायी समृद्धि पर पड़ा. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा नामक गांव में एक समृद्ध, पर परंपरागत बंगाली परिवार में हुआ था.

उन्होंने मेदिनीपुर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और फिर उन्होंने हुगली के मोहसीन कॉलेज में एडमिशन लिया. वैसे किताबों के प्रति बंकिम चंद्र चटर्जी की रुचि बचपन से ही थी और वह शुरुआत में आंग्ल भाषा की ओर भी आकृष्ट थे, उनका कहना था कि अंग्रेजी के प्रति उनकी रुचि तब समाप्त हो गई, जब उनके अंग्रेजी अध्यापक ने उन्हें बुरी तरह से डांटा था. इसके बाद उन्होंने अपनी मातृभाषा के प्रति लगाव लगाना शुरू किया. उन्होंने डिप्टी मजिस्ट्रेट का पद संभाला था. उन्होंने कई उपन्यास लिखे जिनमे 1866 में कपालकुंडला, 1869 में मृणालिनी, 1873 में विषवृक्ष, 1877 में चंद्रशेखर, 1877 में रजनी, 1881 में राजसिंह और 1884 में देवी चौधुरानी शामिल है. इसके अलावा उन्होंने 'सीताराम’, ‘कमला कांतेर दप्तर’, ‘कृष्ण कांतेर विल’, 'विज्ञान रहस्य’, 'लोकरहस्य’, ‘धर्मतत्व’ जैसे ग्रंथ भी लिखे थे. आज वह इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी रचनाएँ लोग खूब पसंद करते हैं.

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