रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा, पर कोई फैसला नहीं ! क्या खुद जंग नहीं जीतना चाहते हैं पुतिन ?
रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा, पर कोई फैसला नहीं ! क्या खुद जंग नहीं जीतना चाहते हैं पुतिन ?
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मॉस्को: साल 2022 में आज ही के दिन सुबह-सुबह न्यूज चैनलों पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तस्वीरों के साथ टैंक-तोप और मिसाइलों के वीडियो दिखाए जाने लगे थे। ख़बरें चलने लगी कि 'रूस ने यूक्रेन पर किया हमला।' कुछ जगहों पर तो राष्ट्रपति पुतिन का युद्ध की घोषणा वाला ऐतिहासिक भाषण भी चलने लगा था। उसके फ़ौरन बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के भविष्य और परिणाम पर चर्चा होने लगी। पूरे विश्व के कई एक्सपर्ट्स ने दावा किया कि रूस कुछ ही दिनों में यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा। कई ने तो यहां तक दावा कर दिया कि इसमें मुश्किल से 24 से 48 घंटे का समय लगेगा। लेकिन, उनका यह मिथक जल्द ही टूट गया। आज रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल हो चुका है। इसके बाद भी न तो रूस युद्ध जीत पाया और न ही यूक्रेन ने घुटने टेके।

दरअसल, रूस का लक्ष्य यूक्रेन पर पूरी तरह कब्जा करने का है ही नहीं। यूक्रेन पर हमले की शुरूआत करते समय ही पुतिन ने स्पष्ट कह दिया था कि उनका लक्ष्य यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं है। उन्होंने कहा था कि रूस, यूक्रेन से नाजीवादी ताकतों को उखाड़ फेकेंगा और अपनी रक्षा करेगा। रूस का लक्ष्य डोनबास इलाके से यूक्रेनी फ़ौज को खदेड़ना और यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन करना है। रूस भी जानता था कि इस काम में काफी समय लगने वाला है, हालांकि, इतना समय लगेगा, ये पुतिन ने नहीं सोचा होगा। उन्हें भी लगता था कि मुश्किल से 1 से डेढ़ माह  में रूस, डोनबास पर नियंत्रण कर लेगा और यूक्रेन से एक बड़ा हिस्सा छीन लेगा। मगर,पश्चिमी देशों के लगातार हस्तक्षेप ने रूसी राष्ट्रपति के सपनों पर पानी फेर दिया।

एक मशहूर कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन 'दोस्त' होता है। इसी को चरितार्थ करते हुए रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद के लिए पश्चिमी देशों ने हाथ बढ़ाए। युद्ध के पहले महीने से ही तुर्की को छोड़ NATO के प्रत्येक देश ने यूक्रेन को हथियार भेजे हैं। तुर्की ने युद्ध शुरु होने के पहले ही यूक्रेन को अपना बायरकटार टीबी-2 ड्रोन बेचा था। इस ड्र्रोन ने रूस को काफी नुकसान पहुंचाया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, लिथुआनिया, लातविया और नॉर्वे ने यूक्रेन को भारी मात्रा में हथियार सप्लाई किए हैं। अमेरिका ने तो यूक्रेनी सैनिकों को अपने कई वेपन सिस्टम चलाने का प्रशिक्षण भी उपलब्ध करवाया है। इन्हीं हथियारों के दम पर यूक्रेनी सेना ने रूस को जबरदस्त चोट पहुंचाई है।

सवाल यह भी उठ रहे हैं कि जब रूस और यूक्रेन की ताकत का कोई मुकाबला नहीं है, तो पुतिन जंग को जीत क्यों नहीं पा रहे हैं। रूस ने अभी तक यूक्रेन के खिलाफ अपनी वायु सेना, थल सेना या नौसेना की पूरी शक्ति का उपयोग नहीं किया है। रूस के पास ऐसी-ऐसी परमाणु मिसाइलें हैं, जो चंद सेंकेंड में जंग को खत्म कर सकती हैं। यही नहीं, रूस गैर परमाणु हथियारों का उपयोग कर यूक्रेन के शीर्ष नेतृत्व को मार सकता है। इसके बाद भी रूस ऐसा कोई कदम नहीं उठा रहा और ना ही पूरी ताकत से युद्ध को लड़ रहा है। यूक्रेन में जारी युद्ध में रूस की ओर से बड़ी तादाद में भाड़े के सैनिक भी शामिल हैं। इनमें कई विदेशी तो कुछ रूस के सजायफ्ता नागरिक हैं।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन की चाल यूक्रेन जंग की आड़ में NATO देशों को बर्बाद करने की है। पुतिन नहीं चाहते कि रूस-यूक्रेन जंग जल्द से जल्द खत्म हो जाए। ऐसे में वह युद्ध को लंबा खींचने के लिए सैन्य कार्रवाईयों को बहुत धीमी रफ्तार से अंजाम दिलवा रहे हैं। पुतिन की चाहत है कि पश्चिमी देश काफी समय तक यूक्रेन युद्ध में उलझे रहें और अपने संसाधनों का उपयोग करें। इससे इन देशों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध से तेल और गैस की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यूरोपीय देशों और गरीब विकसित देशों को झेलना पड़ा है। ऐसे में रूस ओपेक प्लस देशों के साथ मिलकर तेल के प्रोडक्शन को न बढ़ाने का निर्णय लिया है।

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