खूबसूरत ही नहीं बेहद वीर भी थी रानी दुर्गावती, मुगलों को कई बार किया था पराजित
खूबसूरत ही नहीं बेहद वीर भी थी रानी दुर्गावती, मुगलों को कई बार किया था पराजित
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भारत के इतिहास में महिला वीरांगनाओं की तादाद कम नहीं हैं. किन्तु उनमें से सिर्फ रानी दुर्गावती ही ऐसी हैं, जिन्हें उनके बलिदान और वीरता के साथ गोंडवाना (Gondwana) का एक कुशल शासक के रूप में भी याद किया जाता है. 24 जून को देश उनका बलिदान दिवस मनाता है, जब उन्हें मुगलों की आगे हार स्वीकार नहीं की और आखिरी दम तक मुगल सेना का सामना करते हुए अपना बलिदान दे दिया.

रानी दुर्गावती के पति दलपत शाह का मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशजों के 4 राज्यों, गढ़मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला, में से गढ़मंडला पर अधिकार था. दुर्भाग्यवश रानी दुर्गावती से शादी के 4 साल बाद ही राजा दलपतशाह का देहांत हो गया. पति के देहांत के वक़्त दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था, अतः रानी को खुद ही गढ़मंडला का शासन संभालना पड़ा, मौजूदा जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था. रानी ने 16 वर्षों तक इस क्षेत्र में शासन किया और एक कुशल प्रशासक की अपनी छवि निर्मित की. किन्तु उनके पराक्रम और शौर्य के चर्चे अधिक थे. कहा जाता है कि कभी उन्हें कहीं शेर के दिखने की खबर होती थी, वे फ़ौरन शस्त्र उठा कर उस तरफ चल देती थीं और और जब तक उसे मार नहीं लेती, पानी भी नहीं पीती थीं. रानी दुर्गावती बेहद खूबसूरत भी थीं. जब मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के खिलाफ अकबर को भड़काया था. अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं के जैसे दुर्गावती को भी रनिवासे की शोभा बनाना चाहता था. बताया जाता है कि अकबर ने उन्हें एक सोने का पिंजरा भेजते हुए कहा था कि रानियों को महल के भीतर ही सीमित रहना चाहिए, मगर दुर्गावती ने ऐसा जवाब दिया कि अकबर तिलमिला उठा.

रानी दुर्गावती ने मुगल शासकों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया था और उनको कई बार पराजित किया था और हर बार उन्होंने जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए संग्राम भूमि को चुना. दो हमलों के बाद 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला किया तब तक रानी की सैन्य ताकत कम हो गई थी. ऐसे में रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया. युद्ध के दौरान पहले एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका. दूसरा तीर उनकी आंख पर लगा, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गई. इसके बाद तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर घुस गया. अपना अंत समय निकट जानकर रानी ने वजीर आधारसिंह से अनुरोध किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए राजी नहीं हुआ. अतः रानी अपनी कटार खुद ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं.

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