'ममता' की मूरत थीं मदर टेरेसा, लोगों को सिखाया प्रेम और सेवाभाव
'ममता' की मूरत थीं मदर टेरेसा, लोगों को सिखाया प्रेम और सेवाभाव
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26 अगस्त 1910 को जन्मी मदर टेरेसा का जन्म आन्येज़े गोंजा बोयाजियू के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (वर्त्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में अपनी इच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। इन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की।

लगभग 45 वर्षों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की इन्होंने सहायता की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया। 1970 तक वे गरीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए दुनियाभर में मदर नाम से मशहूर हो गईं, माल्कोम मुगेरिज के कई वृत्तचित्र और पुस्तक जैसे समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड में उनका जिक्र किया गया है। 1979 में मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्य लगातार बढ़ता रहा और उनकी मृत्यु के वक़्त तक यह 123 देशों में 610 मिशन नियंत्रित कर रही थीं। इसमें HIV/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के मरीजों के लिए धर्मशालाएं/ घर शामिल थे और साथ ही सूप, रसोई, बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और स्कूल भी थे। मदर टेरसा के निधन के बाद इन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया और इन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि प्रदान की। दिल के दौरे के कारण 5 सितंबर 1997 के दिन मदर टैरेसा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। किन्तु उनके द्वारा दी गई प्रेम और सेवाभाव की शिक्षा आज भी लोगों के दिलों में उन्हें जिन्दा रखे हुए है। 

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