'भारत रत्न' नाना देशमुख की जयंती आज, शिक्षा के क्षेत्र में किए थे अहम कार्य
'भारत रत्न' नाना देशमुख की जयंती आज, शिक्षा के क्षेत्र में किए थे अहम कार्य
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नई दिल्ली: नानाजी देशमुख हमारे देश की महान शख्सियतों में से एक थे। नानाजी को मुख्यरूप से एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। नानाजी ने देश में फैली कुप्रथाओं को ख़त्म करने के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए थे। नानाजी ने भारत के ग्रामीण क्षेत्र को बेहद नजदीक से देखा था, इसके विकास के लिए उन्होंने अभूतपूर्व काम किए थे। गाँव में सारी सुख सुविधा मिल सके, इसके लिए नानाजी सदैव तत्पर रहते थे। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन को नानाजी एक नई राह दिखाई थी। नानाजी को देश विदेश में काफी सारे सम्मान मिले है, किन्तु 2019 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सबसे बड़े पुरुस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया है। 

नानाजी का जन्म एक गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से उन्होंने गरीबी को बेहद करीब से देखा था, उनके परिवार को रोज के भोजन के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। नानाजी का बचपन संघर्ष से भरा हुआ था। नानाजी देशमुख जब बहुत छोटे थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद नानाजी की देखरेख उनके मामा ने की थी। नानाजी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे, जिस कारण वे खुद पैसे कमाने के लिए मेहनत करते थे। बचपन में उन्होंने सब्जी बेचने का भी काम किया था। स्थिति यह थी कि पैसे कमाने के लिए अपने घर से निकल जाया करते थे, फिर उन्हें जहाँ सहारा मिलता, वे वही रह जाते थे। कई दिन तो नानाजी ने मंदिर में भी रहकर गुजारे थे।

नानाजी को बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक था, पैसों की किल्लत के बाद भी नानाजी की यह इच्छा कम नहीं हुई थी। नानाजी ने खुद मेहनत करके, यहाँ-वहां से पैसे जुटाए और अपनी पढ़ाई जारी रखी। नानाजी ने हाई स्कूल की पढ़ाई राजस्थान के सिकर जिले से की थी, यहाँ उनको पढाई के लिए छात्रवृत्ति भी मिली थी। इसी वक़्त नानाजी की मुलाकात डॉक्टर हेडगेवार से हुई, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक भी थे। इन्होने नानाजी को RSS में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, और हर दिन शाखा में आने का निमंत्रण भी दे दिया।

इसके बाद डॉक्टर हेडगेवार ने नानाजी को आगे कॉलेज की पढाई के लिए बिरला कॉलेज में जाने को कहा। उस वक़्त नानाजी के पास इतने पैसे नहीं थे, कि वे इस कॉलेज में एडमिशन ले सकें। हेडगेवार जी ने उनको पैसों की मदद भी करनी चाही, किन्तु स्वाभिमानी नानाजी ने आदरपूर्ण तरीके से उन्हें इंकार कर दिया। इसके बाद नानाजी ने कुछ वर्षों तक खुद मेहनत की और पैसे जुटाए। 1937 में नानाजी ने बिरला कॉलेज में एडमिशन ले लिया। इसी दौरान नानाजी संघ से भी जुड़ गए और वे इससे जुड़े कार्यों में भी पूर्ण रूप से सक्रीय थे। 1939 में नानाजी ने संघ शिक्षा के लिए 1 वर्ष का कोर्स किया।

नानाजी, लोकमान्य तिलक जी को अपना आदर्श मानते थे, वे उनकी राष्ट्रीय विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित थे।  1948 में गाँधी जी की हत्या के बाद जब RSS पर बैन लगा, तब भी नानाजी ने अपनी सूझ-बूझ से इसका तोड़ निकाला और प्रकाशन का कार्य जारी रखा था, ताकि आम जनता तक राष्ट्र से संबंधित बातें पहुँच सकें। नानाजी ने देश में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई अहम कार्य किए थे। देश में सभी को आसानी से शिक्षा मिल सके, इसके लिए उन्होंने 1950 में उत्तरप्रदेश देश का पहला स्वरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय स्थापित किया था। देश के प्रथम ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना चित्रकूट में नानाजी ने की थी। वे इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी थे। इसके साथ ही नानाजी देशमुख ने मंथन नाम की पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया था। 2010 में 93 वर्ष की आयु में नानाजी का देहांत चित्रकूट के उन्ही के द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय में हुआ था। नानाजी लम्बे समय से बीमार थे, मगर वे उपचार के लिए चित्रकूट छोड़कर नहीं जाना चाहते थे।

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