एक बार फिर AAP ने छेड़ा नए जिलों का राग, मचा भारी बवाल
एक बार फिर AAP ने छेड़ा नए जिलों का राग, मचा भारी बवाल
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देहरादून: राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड में नए शहरों के गठन का राग छेड़ दिया है। विशेषज्ञ इसे चुनावी राग की मिसाल दे रहे हैं। पूर्व बीजेपी सरकार में डीडीहाट, यमुनोत्री, कोटद्वार तथा रानीखेत को जिला बनाने का ऐलान हो चूका है, मगर सत्ता पर काबिज रही बीजेपी एवं कांग्रेस की सरकारों में नए शहरों के गठन का केस ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। वही बीते दिनों सीनियर कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर दो वर्ष में चार नए जिले बनाने की घोषणा की तथा अब काशीपुर में दिल्ली के सीएम एवं आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनने पर आधा दर्जन नए जिले बनाने का ऐलान करके इस मसले को और ज्यादा हवा दे दी।

प्रदेश गठन के पश्चात् से ही सियासी दल नए जिले बनाने का ऐलान करते रहे हैं। मगर 21 वर्ष पश्चात् भी नए जिलों के गठन की पहेली सुलझ नहीं पाई है। वर्तमान में उत्तराखंड दो मंडल, 13, जिले, 110 तहसीलें तथा 18 उप तहसीलें हैं। साल 2011 में तत्कालीन सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 15 अगस्त को कोटद्वार, डीडीहाट, यमुनोत्री तथा रानीखेत को जिला बनाने का ऐलान किया था । तत्पश्चात, वह मुख्यमंत्री की कुर्सी से हट गए। उनकी जगह सीएम बने मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी (सेनि) ने 2012 में विधानसभा चुनाव में जाने से पहले नए शहरों के गठन का शासनादेश जारी करा दिया।

वही चुनाव में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस सरकार का जिम्मा विजय बहुगुणा के हाथों में आ गया। चुनाव में गरमाने वाला नए शहरों का मसला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया। राज्य में भिन्न-भिन्न जगहों से नए जिलों के गठन की मांग उठने लगी तो राजस्व परिषद के अध्यक्ष की अध्यक्षता में जिला पुनर्गठन आयोग बना दिया गया। आयोग ने नए शहरों के प्रस्ताव मांगें। प्रशासनिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि एक जिला बनाने और उसके लिए प्रशासनिक तामझाम जुटाने के लिए 1000 करोड़ रुपये का खर्च आने का अंदाजा है। यह खर्च बढ़ भी सकता है। जिलों में अधिकारीयों एवं कर्मचारियों की फौज के साथ ही उनके लिए कार्यालय एवं आवास बनाने पर भारी भरकम धनराशि खर्च होगी।

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