नई दिल्ली: देश भर में अपने कर्मचारियों के वेतन से प्रोविडेंट फंड (पीएफ) अमाउंट की काटने के बावजूद ईपीएफओ में ना जमा करने वाली कंपनियों (डिफाल्टर) की तादात तेज़ी से बढ़ रही है. दिसंबर 2015 में यह संख्या 10,932 तक पहुंच गई थी. जिसमे कुल 1195 सरकारी कंपनियां भी शामिल हैं. इस समय देशभर की करीब 2,200 कंपनियों पर ईपीएफओ का कम से कम 2,200 करोड़ रुपए बकाया है.
बता दे की 2015-16 में ईपीएफ के लंबित मामलों में 23 फीसदी इजाफा हुआ है. इस सिलसिले में 228 पुलिस केस भी दर्ज किये गए हैं. ईपीएफओ द्वारा डिफाल्टर कंपनियों के खिलाफ दर्ज कराए गए मुकदमों में भी करीब चार गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2012-13 में यह संख्या 317 थी, जो 2015 में बढ़कर 1491 हो गई. वहीं 2002 से 2015 के बीच ईपीएफओ अधिकारियों के खिलाफ 322 भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए हैं. डिफाल्टर कंपनियों को बकाया राशि पर अवधि के हिसाब से 17 से 37 प्रतिशत के बीच पेनल्टी देनी होगी.
पीएस सिस्टम में 12 प्रतिशत कर्मचारी को देना होता है, जबकि 13.6 प्रतिशत कंपनी को देना होता है. 19 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों को पीएफ सिस्टम लागू करना जरूरी होता है. इसके माध्यम से जमा राशि पर सरकार ब्याज (वर्तमान दर 8.8 फीसदी) भी देती है. सरकार यह राशि सिक्योरिटीज और कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में निवेश करती है. कर्मचारी अपने पीएफ अकाउंट में जमा राशि रिटायरमेंट या नौकरी छोड़ने के दो महीने बाद निकाल सकते हैं. इसके अलावा घर, शिक्षा, शादी या बीमारी की स्थिति में कुछ हिस्सा निकालने की इजाजत होती है.