चीन में भारत के शार्श डी अफ़ेयर्स रहे लखन मेहरोत्रा बताते हैं, "कहने को तो चीन ने ये कहा कि भारत के साथ लड़ाई के लिए उसकी फ़ारवर्ड नीति ज़िम्मेदार थी, लेकिन माओ ने दो साल पहले 1960 में ही भारत के ख़िलाफ़ रणनीति बनानी शुरू कर दी थी. यहां तक कि उन्होंने अमरीका तक से पूछ लिया कि अगर हमें किसी देश के ख़िलाफ़ युद्ध में जाना पड़े तो क्या अमरीका ताइवान में उसका हिसाब चुकता करेगा?
अमरीका का जवाब था कि आप चीन या उससे बाहर कुछ भी करते हैं, उससे हमारा कोई मतलब नहीं है. हम बस ताइवान की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं." लखन मेहरोत्रा आगे बताते हैं, "अगले साल उन्होंने यही बात ख़्रुश्चेव से पूछी. उस ज़माने में तिब्बत की सारी तेल सप्लाई रूस से आती थी. उन्हें डर था कि अगर उनकी भारत से लड़ाई हुई तो सोवियत संघ कहीं पेट्रोल की सप्लाई बंद न कर दे.
उन्होंने ख़्रुश्चेव से ये वादा ले लिया कि वो ऐसा नहीं करेंगे और उन्हें बता दिया कि भारत से उनके गहरे मतभेद हैं. ख़्रुश्चेव ने उनसे सौदा किया कि आप दुनिया में तो हमारा विरोध कर रहे हैं, लेकिन जब हम क्यूबा में मिसाइल भेजेंगे तो आप उसका विरोध नहीं करेंगे."
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