नई दिल्ली: वर्ष 1857 में 10 मई ही वह ऐतिहासिक दिन था, जब देश की स्वतंत्रता के लिए पहली चिंगारी मेरठ से भड़की थी। गोरों को भारत से खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव वर्ष 1857 में सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में रखी गई, जिसने धीरे-धीरे पूरे देश को एक सूत्र में बाँध दिया था। यह मेरठ के साथ ही पूरे देश के लिए गौरव की बात है। मेरठ के क्रांति स्थल और अन्य धरोहर आज भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिधरा से प्रारंभ हुई आजादी की क्रांति की याद ताजा करती हैं।
On this day in 1857 began the historic First War of Independence, which ignited a spirit of patriotism among our fellow citizens and contributed to the weakening of colonial rule. I pay homage to all those who were a part of the events of 1857 for their outstanding courage.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 10, 2022
आज इस दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 1857 संग्राम के अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की है। पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि, 'आज ही के दिन 1857 में ऐतिहासिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ, जिसने हमारे साथी नागरिकों में देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित किया और औपनिवेशिक शासन को कमजोर करने में योगदान दिया। मैं उन सभी को श्रद्धांजलि देता हूं जो 1857 की घटनाओं में उनके उत्कृष्ट साहस के लिए शामिल थे।'
क्या हुआ था 1857 में ?
मेरठ में 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति की चिंगारी उस समय भड़की थी, जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ जनता में आक्रोश भरा हुआ था। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए रणनीति तैयार कर ली गई थी। एक साथ पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाना था, मगर मेरठ में निर्धारित तारीख से पहले अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का आक्रोश भड़क उठा। इतिहासकारों की माने और राजकीय स्वतंत्रता संग्रहालय में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रिकार्ड को देखें तो, दस मई 1857 में शाम पांच बजे जब गिरिजाघर का घंटा बजा, तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर जमा होने लगे थे।
सदर बाजार क्षेत्र से ब्रिटिश सेना पर लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया। नौ मई को चर्बीयुक्त कारतूसों को इस्तेमाल करने से इंकार करने वाले 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया था। उन्हें विक्टोरिया पार्क स्थित नई जेल में बेड़ियों और जंजीरों से जकड़कर कैद कर दिया था। दस मई की शाम को ही इस जेल को तोड़कर 85 जवानों को आजाद करा दिया था। कुछ सैनिक तो रात में ही राजधानी दिल्ली पहुंच गए थे और कुछ सैनिक ग्यारह मई की सुबह यहां से दिल्ली के लिए रवाना हुए और दिल्ली पर नियंत्रण कर लिया था। दरअसल, मेरठ छावनी में सैनिकों को 23 अप्रैल 1857 में बंदूक में चर्बी लगे कारतूस उपयोग करने हेतु दिए गए। भारतीय सैनिकों ने इन्हें इस्तेमाल करने से साफ़ मना कर दिया था। तब 24 अप्रैल 1857 में सामूहिक परेड बुलाई गई और परेड के दौरान 85 भारतीय सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूसों को प्रयोग करने को दिया गया, लेकिन परेड में भी सैनिकों ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया।
सैनिकों द्वारा चर्बी लगे कारतूस इस्तेमाल करने से मना करने पर उन सभी का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। छह, सात और आठ मई को कोर्ट मार्शल का ट्रायल हुआ, जिसमें 85 सैनिकों को नौ मई को सामूहिक कोर्ट मार्शल में सजा सुनाई गई और उन सभी को विक्टोरिया पार्क नई जेल में ले जाकर कैद कर दिया था। दस मई को जेल तोड़कर सभी 85 सैनिकों को आजाद कर दिया था। क्रांति का गवाह औघड़नाथ मंदिर भी है। काली पलटन के सैनिक वहीं पीछे बने आवासों में रहा करते थे। आसपास के अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी औघड़नाथ मंदिर में आकर रुकते थे। उस वक़्त अंग्रेजों ने मंदिर के पास ट्रेनिंग सेंटर भी बनाया था।
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