एकात्म मानवतावाद के प्रेरक थे पं. दीनदयालय उपाध्याय
एकात्म मानवतावाद के प्रेरक थे पं. दीनदयालय उपाध्याय
Share:

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष और जननायक पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्मोत्सव मना रही है। देशभर में उनके योगदान के लिए उन्हें याद किया जा रहा है। मगर क्या आप उनके बारे में जानते हैं कि आखिर ये महापुरूष थे कौन और इन्होंने भारत में उपजी समस्याओं को लेकर क्या कहा था। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण कार्य किया था। वे 1951 में ही जनसंघ के संगठन मंत्री बन गए थे। इसके बाद वे 1953 को अखिल भारतीय जनसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए। वे एक लेखक भी थे। वर्ष 1967 में उन्हें जनसंघ के 14 वें अधिवेशन में अध्यक्ष बनाया गया था। उनकी लेखनी में चुभन थी। अपनी लेखनी के माध्यम से उन्होंने भारतीय अर्थनीति का नाटक, राजनीतिक डायरी जैसी अमूल्य रचनाऐं लिखीं। वे एक पत्रकार के तौर पर भी पहचाने गए।

प्रारंभिक जीवन

पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को हुआ। वे एक महान चितक थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय मथुरा जिले के गांव नंगला चंद्रभान में पैदा हुए थे। वे भगवती प्रसाद उपाध्याय और रामप्यारी की संतान थे। उनके पिता रेलवे में काम करते थे। मगर बचपन में ही दीनदयाल उपाध्याय के सर से माता-पिता का साया उठ गया था। जब वे 7 वर्ष की अवस्था में थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। इसके पहले ही उनके पिता का निधन जब दीनदयाल जी 3 वर्ष के थे तभी हो गया था। माता पिता के न रहने के बाद भी वे एक दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, पत्रकार और इतिहासकार बने। पंडित जी को एकात्म मानववाद और राष्ट्र जीवन की दिशा का प्रेरक माना जाता है। उनकी लेखनी ऐसी थी कि चंद्रगुप्त नाटक केवल एक ही सीटिंग में लिख दिया था।

कुशल नेतृत्व क्षमता

पंडित जी में नेतृत्व करने की क्षमता बेहतर थी। वे भारत को मां का स्वरूप देना चाहते थे। इसके पीछे उनका तर्क था कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह देश केवल जमीन का एक टुकड़ा भर बनकर रह जाएगा। यह एक बड़ी सोच थी। उन्होंने राष्ट्रीयता और भारत की पहचान को ही सभी समस्याओं की समाप्ति का आधार बताया था। उनका कहना था कि राष्ट्रीयता ही हमारी पहचान है। यदि यह नहीं रहता है तो देश में बिखराव आ सकता है। उन्होंने एकता, समानता और भाईचारे पर जोर दिया था। वे एकात्मवाद को समाज में एकता के तौर पर देखते थे जिसमें सभी एक समान हों वही उनके लिए एकात्मवाद था।

1968 को हो गए विदा

पंडित जी आरएसएस के सच्चे कार्यकर्ता थे वे जनसंघ के माध्यम से देश सेवा में लगे रहे। उन्होंने देश में एकता और हर व्यक्ति के सुख की बात की। उनका निधन 11 फरवरी 1968 को हो गया। मगर आज भी उन्हें याद किया जाता है। जब मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर उन्हें किसी ने मृत पाया तो सारे देश में शोक की लहर फैल गई।

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
Most Popular
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -