बैंगलोर: हिजाब विवाद पर फैसला देते हुए मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का भी जिक्र किया। कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर रोक को जायज ठहराते हुए पर्दा प्रथा पर आंबेडकर की टिप्पणी का भी उल्लेख किया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि पर्दा प्रथा पर उनकी वह राय हिजाब के मामले पर भी लागू होती है। कोर्ट ने आगे कहा कि, 'पर्दा, हिजाब जैसी चीजें चाहे किसी भी समुदाय में हों, उस पर बहस हो सकती है। इससे महिलाओं की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। यह संविधान की उस भावना के विरुद्ध है, जो सभी को समान अवसर देने, सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने और पॉजिटिव सेक्युलरिज्म की बात करती है।'
बाबा साहेब की किताब 'पाकिस्तान और भारत का विभाजन' का उद्धरण देते हुए अदालत ने कहा कि, 'एक मुस्लिम महिला को अपने बेटे, भाई, पिता, चाचा और पति को ही देखने की अनुमति होती है। इसके अतिरिक्त वह कुछ उन लोगों से ही मिल सकती है, जिससे उनका करीबी संबंध हो। मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में नमाज के लिए भी नहीं जा सकती है। उन्हें बाहर जाने के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य है। मुस्लिमों में वह तमाम सामाजिक बुराईयां हैं, जो हिंदुओं में हैं। कई मायनों में तो उनसे भी अधिक हैं। वह है पर्दा, जो हिंदुओं के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं के लिए अधिक जरूरी बताया गया है।'
इसी किताब की एक और टिप्पणी को दोहराते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि, 'पर्दे में महिलाएं असहाय दिखाई देती हैं। भारत में बड़ी तादाद में महिलाएं पर्दे में नजर आती हैं और यह उनकी कमजोरी का एक कारण है। भारत में कोई भी आसानी से इससे समझ सकता है कि पर्दा की समस्या कितनी बड़ी है।' बता दें कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर रोक को जायज ठहराते हुए कोर्ट ने कहा था कि यह इस्लाम का हिस्सा नहीं है। कोर्ट ने दो टूक कहा था कि अगर संस्थानों की तरफ से यूनिफॉर्म तय की गई है तो फिर उस पर छात्रों द्वारा सवाल नहीं उठाया जा सकता।
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