हॉन्ग-कॉन्ग से लेकर सिंगापुर तक इस डिवाइस से कोरोना का चलेगा पता
हॉन्ग-कॉन्ग से लेकर सिंगापुर तक इस डिवाइस से कोरोना का चलेगा पता
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कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में हजारों लोगों की मौत हो गई हैं, तो दूसरी तरफ लाखों लोग इससे संक्रमित हैं। इसके साथ ही ऐसे में कई देशों ने इस वायरस को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं हैं। वहीँ इनमें स्कूल बंद से लेकर अन्य कई तरह की पाबंदियां तक मौजूद हैं। इसके अलावा कई देशों ने इस वायरस से लड़ने के लिए तकनीक का सहारा लिया है, जिससे उन्हें काफी हद तक कामयाबी मिली है। वहीं आज हम आपको कुछ देशों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने डिवाइस और मोबाइल एप के उपयोग कर इस खतरनाक वायरस को ट्रैक करने के साथ रोका भी है।  

हॉन्ग-कॉन्ग ने किया रिस्टबैंड का उपयोग
इसके साथ ही हॉन्ग-कॉन्ग की सरकार ने कोरोना वायरस पर लगाम लगाने के लिए खास तकनीक वाले रिस्टबैंड का इस्तेमाल किया है, जो लगातार स्मार्टफोन एप के साथ कनेक्ट रहता है। वहीं, यह एप लगातार लोगों की लोकेशन को ट्रैक करने के साथ उनकी पल-पल की जानकारी अधिकारियों को देता है।

साउथ कोरिया का खास टूल 
वैसे तो साउथ कोरिया ने कोरोना वायरस को ट्रैक करने के लिए सीसीटीवी का उपयोग किया है। परन्तु इन सब के बावजूद कोरियन सरकार ने गुरुवार को एक खास टूल लॉन्च किया था। सरकार इस टूल के जरिए मरीजों पर हर पल नजर बनाए रखती है।

सिंगापुर का मोबाइल एप
सिंगापुर की सरकार ने कोरोना वायरस के मरीजों को ट्रैक करने के लिए TraceTogether नाम का मोबाइल एप लॉन्च किया था। वहीं यह एप ब्लूटूथ के सिग्नल पर काम करता है। वहीं, यह मोबाइल एप आधिकारियों को जानकारी देता है कि कोरोना का मरीज दिन में कितने लोगों से मिला है।

चीन का कलर कोड
कोरोना वायरस को रोकने के लिए चीन ने सबसे पहले कलर कोडिंग तकनीक का उपयोग  किया है। इस सिस्टम के लिए चीन ने दिग्गज टेक कंपनी अलीबाबा और Tencent के साथ साझेदारी की है। इसके साथ ही यह सिस्टम स्मार्टफोन एप के रूप में काम करता है। इसमें यूजर्स को उनकी ट्रेवल के साथ मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार ग्रीन, यैल्लो और रेड कलर का क्यूआर कोड दिया जाता है। वहीं, ये कलर कोड तय करते हैं कि यूजर को क्वॉरेंटाइन (घर में रहना) करना चाहिए या फिर उसे सार्वजनिक स्थान पर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। 

चीनी सरकार ने इस सिस्टम के लिए कई चेकप्वाइंट्स बनाए हैं, जहां लोगों की चेकिंग होती हैं। यहां उन्हें उनकी ट्रेवल और मेडिकल हिस्ट्री के मुताबिक क्यूआर कोड दिया जाता है। अगर किसी को ग्रीन कलर का कोड मिलता है, तो वह इसका उपयोग कर किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जा सकता है। तो दूसरी तरफ अगर किसी को लाल रंग का कोड़ मिलता है, तो उसे घर में रहने को कहा जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस सिस्टम का उपयोग 200 से ज्यादा चीनी शहरों में हुआ है।

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