बमुश्किल मिल पा रहा है पानी, नदियाँ हो रही हैं प्रदूषित
बमुश्किल मिल पा रहा है पानी, नदियाँ हो रही हैं प्रदूषित
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नई दिल्ली : प्रतिवर्ष देश में गर्मी का मौसम प्रारंभ होते ही जलसंकट की स्थिति गहराने लगती है। यही नहीं हालात ये रहते हैं कि नदियों का जल तक पीने के काबिल नहीं रहता है। वैसे पेयजल के लिए स्वच्छ पानी की जरूरत सालभर ही महसूस होने लगती है। यही नहीं एक सर्वे में यह जानकारी मिली है जिसमें यह बात सामने आई है कि लगभग 86 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि नदियों का पानी पीने के काबिल नहीं है। यही नहीं इन नदियों में वाराणसी में गंगा, दिल्ली में यमुना, जबलपुर में नर्मदा, कटक में महानदी, सूरत में ताप्ती, असम में ब्रह्मपुत्र और विजयवाड़ा में कृष्णा के पानी को लेकर सर्वे किया गया है। विश्व पर्यावरण दिवस के पहले इस तरह की बातें सामने आने के बाद जो खुलासा किया गया है वह बेहद अहम है। यही नहीं 93 प्रतिशत लोगों ने नदियों की बिगड़ती हालत पर चिंता जताई है। 

माना जा रहा है कि देशभर में सीवेज सिस्टम ऐसा है, जिससे दूषित जल सीधे नदी में मिल जाता है। दूसरी ओर पानी को ट्रीटमेंट के बाद नदियों में छोड़ने की जरूरत है। दूसरी ओर पर्यावरण की क्वालिटी और स्वास्थ्य को लेकर इस बारे में विचार किया जा रहा है। 

यही नहीं कहा गया है कि एयर क्वालिटी का स्वास्थ्य पर तत्काल प्रभाव होता है। नदियों के प्रदूषित होने के लिए एक बड़े कारण के तौर पर बढ़ते औद्योगिकीकरण को भी देखा जा रहा है। यही नहीं औद्योगिकरण के चलते भारत में करीब 70 प्रतिशत नदियों का जल प्रदूषित होता है। दूसरी ओर भारत में पेट की करीब 80 प्रतिशत बीमारियां 

दूषित जल के चलते ही होती हैं। कुछ समय पूर्व संयुक्त राष्ट्र के अनुसार प्रति 10 में से एक व्यक्ति को पीने का स्वच्छ पानी नहीं मिल पा रहा है दूसरी ओर अल्पविकसित देशों के लगभग 15 करोड़ लोगों को साफ पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा पानी की क्वालिटी को लेकर भारत को 120 वां स्थान प्रदान किया गया।

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