क्या शादी होने के बाद भी अच्छे नहीं थे फ़ीरोज़ गांधी और इंदिरा के बीच के संबंध ?
क्या शादी होने के बाद भी अच्छे नहीं थे फ़ीरोज़ गांधी और इंदिरा के बीच के संबंध ?
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इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी इन दोनों नेताओं का नाम हमेशा ही एक साथ लिया जाता है। दोनों की प्रेम कहानी के साथ इनके रिलेशन में आई दरार और कड़वाहट के बारें में गहराई बताती है। बताया जाता है फिरोज और इंदिरा दोनों एक-दूसरे को बहुत ही लम्बे अरसे से जानते थे लेकिन दोनों के मध्य प्यार बहुत ही देर से पनपा। शुरुआत में फिरोज गांधी इंदिरा की सूझबूझ से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने इंदिरा को शादी करने का प्रस्ताव रखा था। फिरोज गांधी की बहुचर्चित जीवनी, ‘फिरोज : द फॉरगेटेन गांधी’ में बार्टिल फाल्क ने फिरोज गांधी की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं पर खुलकर लिखा है।

इंदिरा और फिरोज की नजदीकियों को नापसंद किया करते थे पंडित नेहरु: दोनों एक-दूसरे को बहुत पहले से जानते थे लेकिन लंदन में पढ़ाई के बीच फिरोज और इंदिरा एक दूसरे के नजदीक आए और आगे चलकर शादी दोनों ने शादी करने का निर्णय किया। हालांकि, इंदिरा के पिता जवाहरलाल नेहरू को दोनों के रिश्ते से खुश नहीं थे और इसके पीछे इंदिरा गांधी की सेहत वजह कही गई है। इंदिरा ने जब पिता नेहरू के सामने फिरोज से शादी का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने डॉक्टरों की नसीहत याद दिलाई और इंदिरा को बताया कि शादी के बाद क्या-क्या दिक्कतें हो सकती हैं। हालांकि, इंदिरा ने पिता की नहीं सुनी और वर्ष 1942 में गुजराती पारसी फिरोज गांधी से शादी की।

दोनों के मध्य इन कारणों से बढ़ने लगी दूरियां: शादी के कुछ दिनों के उपरांत ही इंदिरा और फिरोज के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं बची। खासकर राजीव और संजय के जन्म के उपरांत दोनों के मध्य दूरी बढ़ने लगी। ‘फिरोज: द फॉरगेटेन गांधी’ में बार्टिल फाल्क लिखते हैं ‘1955 में इंदिरा और फिरोज के मध्य अनबन तब शुरू हुई जब इंदिरा अपने दोनों बच्चों को लेकर लखनऊ स्थित अपना घर छोड़ कर पिता के घर इलाहाबाद आ गईं’ और इसी वर्ष इंदिरा गांधी पहली बार कांग्रेस की वर्किंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव समिति सदस्य भी बन गई थी, लेकिन जब फिरोज ने पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो दोनों के रिश्ते और कड़वे होने लगे।

पंडित नेहरु के सामने इंदिरा को कह दिया ‘तानाशाह:’ हम बता दें कि फिरोज ने पत्नी इंदिरा के ‘तानाशाही प्रवृत्ति’ को पहले ही जान चुके थे और वह इसे कहने से भी नहीं चूके। 1959 में इंदिरा गांधी चाहती थीं कि केरल में चुनी हुई गवर्नमेंट को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। उस दौरान वह कांग्रेस की अध्यक्ष तो थी हीं और साथ ही सरकार में भी उनकी चलती थी। ऐसे में एक सुबह नाश्ते की टेबल पर फिरोज ने इंदिरा को ‘फासीवादी’ बोल दिया था। उस समय इंदिरा के पिता जवाहरलाल नेहरू भी वहां मौजूद थे। जिसके उपरांत तो इंदिरा फिरोज को देखना तक पसंद नहीं करती थी।

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