सुप्रीम कोर्ट का फैसला, न्यायपालिका को बचाने के लिए सेना भी बुला सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, न्यायपालिका को बचाने के लिए सेना भी बुला सकते हैं
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नई दिल्ली : भारत के अगले चीफ जस्टिस बनने जा रहे टीएस ठाकुर ने कड़े लहजे में संदेश देते हुए कहा है कि अगर न्यायपालिका को बचाने के लिए सेना को बुलाने की जरूरत पड़ी तो वो वह भी करेंगे. उन्होने कहा कि सुप्रीम कोर्ट, मद्रास हाई कोर्ट को ब्लैकमेल करने की इजाजत किसी को भी नहीं देगा. जस्टिस ठाकुर और पीसी पंत की बेंच ने बुधवार को कहा है कि न्यायपालिका और इसकी मर्यादा को बचाने के लिए वह सेना को भी बुला सकते हैं. इस बेंच ने तमिनलाडु सरकार की हाई कोर्ट की सुरक्षा पुलिस को देने की अपील को खारिज कर दिया गया है. 

तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई और मदुरई हाई कोर्ट परिसर में CISF के फैसले पर सवाल उठाए थे. इस पर कोर्ट ने कहा था कि राज्य की पुलिस कोर्ट परिसर में वकीलों और उनके परिजनों द्वारा किए जाने वाले हंगामे को रोकने में नाकाम रही है और इसी के चलते CISF को सुरक्षा में तैनात करने का आदेश दिया था.

बता दें कि हाई कोर्ट के वकीलों ने तमिल को कोर्ट की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग को लेकर नारेबाजी और जजों का घेराव किया था और परिजनों को लेकर कोर्टरूम में भी घुस गए थे.

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर ऐडवोकेट एल नागेश्वर राव ने कहा कि कोर्ट से पुलिस सुरक्षा हटाने से पुलिस के मनोबल पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि वकीलों ने जिस तरह का अनियंत्रित व्यवहार किया, हाई कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना उसे रोकना संभव नहीं था.

जस्टिस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और क्या कर सकते थे.'अगर वकील कोर्ट को नहीं चलने देंगे तो कोर्ट क्या कर सकता है. न्यायपालिका को ब्लैकमेल किया जा रहा है और पुलिस दर्शक बनी हई है. हमें सुनिश्चित करना है कि संस्था का सम्मान और स्वरूप बरकरार रहे.

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