इस गणतंत्र बेटियां मांगे बोलने की आज़ादी
इस गणतंत्र बेटियां मांगे बोलने की आज़ादी
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नई दिल्ली: पान गुमठी, चाय की झोपड़नुमा दुकान, छोटे-छोटे ढाबे हो या दूसरी जगह, हर एक जगह देश की तस्वीर साफ बदली हुई नज़र आ रही हैं . आजादी के 71 साल बाद हिंदुस्तान की आबोहवा पूरी तरह से बदल गई हैं .गाँव क़स्बे हो गए, क़स्बे छोटे शहर में तब्दील होते जा रहे हैं, जब कि शहर, महानगर में विस्तार लेते जा रहे हैं . कह सकते हैं कि आने वाला कल हमारा होगा, जिसमें देश की नई तस्वीर दुनिया के सामने आएगी. 

आजादी के बाद जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो आम इंसान की आजादी के सपने दोबारा सच हो गए .यह देश की अंदरूनी आज़ादी का एक हिस्सा था .देश की आजादी के साथ ही वहां के नागरिकों के अधिकारों की आज़ादी की महत्ता को कम नहीं आँका जा सकता. लेकिन ऐसा नहीं है कि संविधान लागू कर देने से भर हमें सारे अधिकार पूरी तरह से प्राप्त हो गए हैं. अभिव्यक्ति की आज़ादी आज भी हमारे लिए एक चुनौती हैं .संविधान लागू हुए 71साल हो गए लेकिन आज भी हम खुलकर बोल भी नहीं सकते हैं .

गणत्रंत दिवस के एक दिन पहले शरद यादव द्वारा दिए एक बयान ने यह सिद्ध कर दिया है कि अहमद फैज़ की ये पंक्ति सिर्फ एक पंक्ति ही है वास्तविकता का इससे कोई लेना देना नही है. शरद ने अपने एक भाषण में वोट को देश की बेटियों की इज्जत से बड़ा बताया, वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी होती है'.  इस तरह सरेआम राजनेता जब महिलाओ के लिए अपमान जनक भाषण देंगे. तो उससे क्या यह उम्मीद लगाई जा सकती है कि महिलाओ पर हो रहे अत्याचार कभी रुक पाएंगे. वही दूसरे नज़रिये से देखा जाये तो सरकार महिलाओ के लिए कई अभियान चला रही. लेकिन यह सब उस समय बेमाने लगने लगते है जब इंसाफ और अपने हक़ के लिए लड़ रही महिलाओ का मुँह दबा दिया जाता. ज्ञात हो आपको हालही दंगल फिल्म की एक्टर्स ज़ायरा वसीम ने जम्मू कश्मीर के मुसलमानों की कट्टरपंति का खुलासा करते हुए ट्वीट किया था जिसके बाद उसे जान से मारने की धमकी मिली, यह कोई पहला मामला नही है.जब देश की किसी महिलाओ ने आवाज़ उठाई है और उसका मुँह दबा दिया गया हो.  
 
हालाँकि कई क्षेत्रो में देश की महिलाओ की सराहना भी की गई, अगर आज से करीब 5-6 साल पीछे जाये तो हम देखते है कि उस समय महिलाओ की राष्ट्रीय खेलो में भागीदारी कम होती थी साथ ही उनके खेल को उतनी महत्वता भी नही दी जाती थी लेकिन अब ऐसा नही रहा भारतीय महिलाये भी पुरुषो से कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है. साक्षी बादल, सायना नेहवाल, फोगाट बहने आदि ऐसी महिला खिलाडी है जिन्होंने देश को गौरवान्वित किया है और उन सभी को मुहतोड़ जवाब भी दिया, आज भी कही न कही महिलाओ को पुरुषो से कम आंका करते है. 2007 में देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनी प्रतिभा पाटिल ने एक ऐसा उदारण पेश किया की महिलाएं सिर्फ घर नही देश भी चला सकती है जिसके बाद से देश में महिला पुलिस मे 40% इजाफा हुआ है,  
 
वैसे देश में 15 अगस्त और 26  जनवरी को एक त्योहार के रूप मनाया जाता है, इस दिन हम भारत की आज़ादी के लिए लड़े उन सभी जवानों को याद करते है जिन्होंने अपनी जान की परवाह करे बिना हमे अंग्रेजो से आजाद करवाया है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि उन शहीदों को याद करने के लिए हमे 15 अगस्त 26 जनवरी जैसी तारीखे क्यों याद रखनी होती. क्या उन शहीदों को याद करने वाला सिर्फ यही है.   

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