केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानि (CRPF) इंडिया के केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में सबसे बड़ा कहा जाता है। यह इंडिया गवर्नमेंट के गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। लेकिन इस पुलिस बल को ब्रिटिश पहचान से आजादी देश के पहले उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने दिलवा दी थी।
दरसअल, CRPF को ब्रिटिश काल में 27 जुलाई, 1939 में सीआरपी यानी क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के नाम से बनाया जा चुका है, लेकिन आजादी के दो वर्ष के उपरांत 1949 में देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल इस पुलिस फोर्स का नाम भी बदल चुके है। पटेल ने सेवाओं को कायम रखते हुए इसका नाम बदलकर सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स भी कर चुके है। पटेल ने ब्रिटिशों की पहचान से मुक्ति दिलाने यह कदम उठा लिया है।
खबरों का कहना है कि मध्यप्रदेश के नीमच में ब्रिटिश राज के दौरान उत्तर भारत का सैन्य घुड़सवार सेना मुख्यालय बना दिया गया था। सन् 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश पुलिस को खदेड़ते हुए इस सैन्य छावनी पर कब्जा भी कर चुके थे। इसके उपरांत क्रांतिकारियों ने भी इस छावनी को अपने आंदोलन के लिए हेडक्वाटर बनाया। कहा जाता है कि छावनी पर कब्जा करने के कुछ ही वक़्त के उपरांत ब्रिटिश सेना ने सभी क्रांतिकारियों को या तो मार दिया था या फिर उन्हें पकड़ कर अगले दिन फांसी पर लटकाया गया था।
ब्रिटिशों ने दिया था नीमच नाम: नीमच को आज हम जिस नाम से जानते हैं वो नाम अंग्रेजों के द्वारा ही दिया गया है। उत्तर भारत की महत्वपूर्ण सैन्य छावनी होने के कारण अंग्रेज़ों ने इसे NIMACH यानी नॉर्थ इंडिया मिलिटरी एंड केवल्री हेडक्वाटर्स का नाम दे दिया गया था। स्वतंत्रता पाने के बाद भारत सरकार ने इस नाम में स्पेलिंग को छोड़ कोई बदलाव नहीं किया।
CRPF के लिए धर्मस्थल है नीमच: CRPF जवानों के लिए नीमच एक विशेष अहम् रखता है। ये जवान इस जिले को अपने लिए किसी धर्मस्थल से कम नहीं मानते है। जवानों का मानना है कि एक ना एक बार तो सभी जवानों को सेना के इस मंदिर में माथा टेकने आना ही होता है। सीआरपीएफ का तो जन्मस्थान ही नीमच है इसलिए इस पुलिस फोर्स का पूरा इतिहास ही इस जगह की देन है।
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