style="text-align: justify;">गुजरात / गांधीनगर : एक पिता अपने बच्चो के लिए अपनी किडनी बेचना चाहता है। गुजरात निवासी रमेशभाई नंदवाना जिनकी उम्र 34 साल अपनी किडनी बेच कर अपने आश्चर्यजनक रूप से मोटे बच्चो का इलाज करना चाहता हैं। उनके बच्चे दुनिया के सबसे मोटे बच्चो की गिनती में शामिल हो गए है।
उनके बच्चों का नाम योशिता (5), अनीशा(3) और हर्ष (18 महीने) है। ये बच्चे एक हफ्ते में इतना खाना खा जाते हैं जितना दो परिवार एक महीने में खाते हैं। रमेशभाई को बच्चों के स्वास्थ्य की चिन्ता है और उन्हें डर है कि कहीं ये बीमारी उनके बच्चों को उनसे दूर ना कर दे इसीलिए वह किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कराना चाहते हैं और इसके लिए पैसों की ज़रूरत होगी तो वह अपनी किडनी बेचने की सोच रहे हैं।
वह कहते हैं,"मेरे बच्चों का वजन जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, मुझे डर है कि कहीं ये लोग मर ना जाएं।" योशिता और अनीता 18 रोटियां, डेढ़ किलो चावल, दो कटोरे शोरबा, छह पैकेट चिप्स, पांच पैकेट बिस्किट, 12 केले और एक लीटर दूध रोजाना पीती हैं। उनकी इस भूख के कारण उनकी मां प्रगना बेन (30) को पूरा-पूरा दिन रसोई में ही बिताना पड़ता है।
उन्होंने बताया,"मेरे दिन की शुरुआत 30 रोटियां और एक किलो सब्जी बनाने से होती है, और इसके बाद दोपहर के खाने की तैयारी शुरु हो जाती है। इनकी भूख कभी शांत नहीं होती, ये लोग हमेशा खाना मांगते रहते हैं और नहीं मिलने पर रोते-चिल्लाते हैं। मेरा पूरा दिन खाना बनाने में ही बीत जाता है।" इस दंपत्ति की एक बड़ी बेटी भविका (6) बिल्कुल ठीक है।
रमेशभाई बताते हैं,"जब योशिता पैदा हुई थी तो वह बहुत कमजोर थी और हम उसकी सेहत के लिए परेशान थे। हमने उसकी सेहत के लिए पहले साल थोड़ा ज्यादा खिलाया लेकिन जन्मदिन आते आते वह 12 किलो की हो चुकी थी। "हमारी तीसरी बेटी अनीशा अपने पहले जन्मदिन पर 15 किलो की थी।
इसके बाद जब हमारा बेटा भी इसी तरह भारी भरकम हो गया तो हमें समझ में आया कि ये कोई बीमारी है। हमने कई डॉक्टरों को दिखाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और बड़े अस्पतालों का खर्चा हम वहन नहीं कर सकते।" रमेशभाई दिहाड़ी मजदूर हैं और 100 रुपया रोज कमाते हैं। कई बार उन्हें काम नहीं मिलता तो बच्चों का पेट भरना कठिन हो जाता है।
वे बताते हैं,"बच्चों को भूखा नहीं देख सकता इसलिए ज्यादा काम करता हूं, बच्चों के खाने पर करीब 10,000 महीने का खर्चा हो जाता है।" वह बताते हैं,"जब मेरे पास पैसा नहीं होता तो मैं अपने भाइयों और दोस्तों से मांगता हूं लेकिन अपने बच्चों को भूखा नहीं रहने देता। पिछले काफी वक्त से बच्चों का इलाज करा रहा हूं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
हमारे परिवार में कोई इस तरह से मोटा नहीं है, केवल मेरे बच्चों के साथ यह परेशानी है। जब बच्चे चल फिर नहीं पाते तो दिल को बहुत दुख होता है।" नहाने से लेकर नित्यक्रियाओं के लिए बच्चों को माता पिता का सहारा लेना पड़ता है। प्रगना बेन का वजन मात्र 40 किलो है ऐसे में उनके लिए बच्चों को उठाना काफी कठिन है।
अपने मोटापे के कारण ये बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। ऐसे में यह घर पर खेलते हैं और खाना खाते हैं। डॉक्टरों को लगता है कि प्रेडर विली सिंड्रोम से ग्रसित हैं जिसमें इंसान को खाने की इच्छा होती रहती है। डॉक्टरों ने बताया कि एक बार अच्छे से पूरे चेकअप के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।