नोट बंदी ने बचाई पशुओं की जान
नोट बंदी ने बचाई पशुओं की जान
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देशभर में नोट बंदी के अभियान के बाद कोई इसकी सराहना कर रहा है, तो कहीं इसका विरोध भी हो रहा है. मगर नोट बंदी का एक फायदा पशुओं को जरूर हो रहा है. फिलहाल इनके जान के दुश्मन इनके ऊपर रहम कर रहे हैं, नोट मंदी की मार चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध कानपुर पर भी पड़ी है. यहां के लगभग 400 एक्सपोर्टर चमड़े का माल सप्लाई नहीं कर पा रहे हैं.

इस कारोबार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक लखनऊ और आसपास के लगभग सभी जिलों में चमड़े का अधिकतर सामान कानपुर से ही आता है. क्योंकि वहां इसके लिए लगभग 380 टेनरियां और बड़ी मात्रा में छोटे स्तर पर लोग चमड़े का कार्य करते हैं. परंतु नोट बंदी के बाद से बिजनेस के लिए खोले जाने वाला करंट अकाउंट से 50000 रुपए की लिमिट निर्धारित की गई है जिस कारण इस उद्योग को मंदी का आलम देखना पड़ रहा है.

जानकारों की माने तो चमड़े के कारोबार का टर्नओवर लगभग 12000 करोड़ का है. उन्नाव और कानपुर मैं दूरदराज के गावों से इस कारोबार से जुड़े हुए लोग मरे हुए पशुओं और मवेशियों की खाल लेकर आते हैं जिससे चमड़े का सामान बनाया जाता है. बाजार में चमड़े के सामानों की काफी अधिक संख्या में मांग है. जिसमें चमड़े की बेल्ट, पॉकेट पर्स, बड़े बैग, जूते, इत्यादि की बिक्री काफी अधिक संख्या में होती है. और उसका सामान काफी महंगा भी मिलता है.

सूत्रों की माने तो इतनी बड़ी संख्या में मरे हुए पशुओं की उपलब्धता नहीं हो पाती है क्योंकि प्राकृतिक मृत्यु अपने समय पर ही आती है. इसलिए चमड़ा कारखानों को मरे हुए जानवर का चमड़ा सप्लाई करने वाले कुछ लोग अक्सर लालच में जीवित पशुओं को मौत की नींद सुला देते हैं. परंतु नोट बंद के बाद इस कारोबार में आई मंदी के कारण स्लाटर हाउस का धंधा मंदा है. जिस कारण कच्चे माल की मांग घटी है. भले ही इसका असर इस कारोबार से व्यापारियों पर खराब पड़ रहा हो. परंतु पशुओं के लिए अच्छी खबर यह है कि मंदी के दौर में लालची कारोबारियों से उनकी जान कुछ दिन और बच जाएगी.

 

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