मंदिर जहाँ धर्मध्वज के साथ लहरता है राष्ट्रध्वज
मंदिर जहाँ धर्मध्वज के साथ लहरता है राष्ट्रध्वज
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जी हाँ बिलकुल सही सुना आपने, पहाड़ी बाबा के नाम से यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहां हर वर्ष स्वतन्त्रता और गणतन्त्र दिवस के मौके पर धर्मध्वज के साथ साथ राष्ट्रध्वज भी बड़े शान से फहराया जाता है। झारखंड राज्य के रांची जिले में पहाड़ी बाबा का मंदिर सदियों से इसी एक वजह से नागरिकों के लिए के लिए जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है।

यह एक ऐसा मंदिर है जो प्रभु भक्ति के साथ ही राष्ट्रभक्ति का भी संदेश देता है। मन में आपके ज़रूर यह सवाल उठ सकता है की क्या देव और देश दोनों समान रूप से पूज्यनीय हैं, जी हाँ बिलकुल। शक हो यदि, तो अपने सीने में धड़कते दिल से पूछें बेशक वह भी हाँ में ही हुंकार भरेगा। आप ही सोचें यदि स्वतन्त्रता ना होती तो क्या आप स्वतंत्र रूप से पूजन अर्चना कर सकते थे, कतई नहीं।

आइये जाने मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य:

रांची रेलवे स्टेशन से करीबन 7 किलोमीटर की दूरी पर 26 एकड़ में फैला और 350 फुट की ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी बाबा का मंदिर पूरे भारतवर्ष में अपनी तरह का शायद इकलौता ऐसा मंदिर होगा जहाँ धर्मध्वज के संग राष्ट्रध्वज फहराया जाता है। आमतौर पर सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे पर अपने अपने धर्मध्वज को फहराने का नियम है। परंतु इस मंदिर में देव और देश दोनों को ही समान दर्जा दिया जाता है।

मंदिर में राष्ट्रध्वज को धर्मध्वज से सदैव ऊपर रखा जाता है, यहा इस परंपरा की शुरुआत 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि से की गयी थी। प्रत्येक वर्ष स्वतन्त्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रातः काल में मंदिर के मुख्य पूजन के पश्चात राष्ट्रगान के साथ तिरंगे को फहराया जाता है। सभी धर्म के लोग बड़े ही उत्साह के साथ इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं, जिससे यह स्पष्ट देखने मिलता है की हमारा देश सर्वोपरि है पूज्यनीय है।

मंदिर का पुराना नाम टीरीबुरु था जिसे ब्रिटिश साम्राज्य ने फांसी टुंगरी में तब्दील कर दिया था। अंग्रेजों ने छोटा नागपुर अपना अधिकार जमाने के बाद रांची को अपना संचालन केंद्र बनाया और जो भी देशद्रोही, क्रांतिकारी, या किसी भी प्रकार से ब्रिटिश साम्राज्य के लिए घातक होता था उन्हें इसी फांसी टुंगरी पर खुलेआम फांसी दे दी जाती थी। स्वाधीनता से जुडे कई क्रांतिकारियों को इसी जगह पर फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इन्हीं शहीदों की याद में आज तक ये राष्ट्रिय ध्वज फहराया जाता है।

मंदिर में 15 अगस्त 1947 की आज़ादी से संबन्धित घोषणा का एक शिलालेख भी रखा हुआ है। मंदिर के मुख्य पुजारी देवी बाबा की यदि माने तो मंदिर का इतिहास नागवंशों से भी जुड़ा हुआ है। लोगों को उम्मीद है की सरकार अवश्य ही इस मंदिर पे ध्यान देगी और ये मंदिर ना सिर्फ धार्मिक केंद्र के तौर पर विकसित होगा बल्कि राष्ट्रिय एकता की भी मिसाल विश्व के कोने कोने तक पहुंचाएगा।

"निशांत सिंह"

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