तमिलनाडु गवर्नर ने राष्ट्रपति को भेज दिए 10 बिल, सुप्रीम कोर्ट ने दागा तीखा सवाल
तमिलनाडु गवर्नर ने राष्ट्रपति को भेज दिए 10 बिल, सुप्रीम कोर्ट ने दागा तीखा सवाल
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चेन्नई: सुप्रीम कोर्ट ने आज तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ बैठक करने और बिलों को मंजूरी देने में देरी पर गतिरोध को हल करने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "हम चाहेंगे कि राज्यपाल इस गतिरोध को सुलझाएं। मुझे लगता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री को आमंत्रित कर सकते हैं और उन्हें बैठकर इस पर चर्चा कर सकते हैं।" 

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक सिंघवी ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्यपाल ने विधानसभा द्वारा दोबारा अपनाए गए 10 विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेज दिया है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने कहा कि विधानसभा द्वारा दोबारा अपनाए गए विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं किए जा सकते। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 11 दिसंबर को करेगा। 

बता दें कि, गवर्नर रवि ने इस महीने की शुरुआत में दस बिल लौटा दिए थे - जिनमें से दो पिछली AIADMK सरकार द्वारा पारित किए गए थे। इसके बाद तमिलनाडु विधानसभा ने सभी दस विधेयकों को फिर से अपनाने के लिए एक विशेष सत्र आयोजित किया, जिन्हें राज्यपाल की सहमति के लिए वापस भेज दिया गया। तमिलनाडु सरकार ने भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपाल पर जानबूझकर विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने और "निर्वाचित प्रशासन को कमजोर" करके राज्य के विकास को बाधित करने का आरोप लगाया है। सीएम स्टालिन ने रवि पर तीखा हमला करते हुए विधानसभा में कहा कि बिना किसी कारण के सहमति रोकना अस्वीकार्य है।

उन्होंने कहा कि, "उन्होंने (गवर्नर ने) अपनी व्यक्तिगत सनक और सनक के कारण विधेयक लौटा दिए... सहमति न देना अलोकतांत्रिक और जनविरोधी है। यदि विधेयक विधानसभा में फिर से पारित किया जाता है और उनके पास भेजा जाता है तो राज्यपाल सहमति नहीं रोक सकते।"  तमिलनाडु के कानून मंत्री सेवुगन रेगुपति ने कहा कि, "राज्यपाल आरएन रवि सारी शक्तियां अपने पास रखने के लिए ऐसा करते हैं। उनका मानना है कि निर्वाचित सरकार के पास कोई शक्तियां नहीं हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर को तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपालों द्वारा की जा रही देरी पर "गंभीर चिंता" व्यक्त की।
कोर्ट ने पुछा था कि, "ये बिल 2020 से लंबित थे। गवर्नर तीन साल से क्या कर रहे थे?" 

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