जब स्वामी विवेकानंद से गुरु रामकृष्ण ने कहा था, 'तेरी हड्डियों से भी विश्व कल्याण के कार्य होंगे'
जब स्वामी विवेकानंद से गुरु रामकृष्ण ने कहा था, 'तेरी हड्डियों से भी विश्व कल्याण के कार्य होंगे'
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12 जनवरी को देश के युवाओं को नया मार्ग दिखलाने वाले स्वामी विवेकानंद की जयंती है। बालक नरेंद्र बचपन से ही मेधावी, आज़ाद विचारों के धनी व्यक्ति थे। पढ़ने में भी काफी होशियार थे। कम प्रयास में ही विद्यालय में उच्च अंकों से उत्तीर्ण होते थे और अपने शिक्षकों के प्रिय पात्र थे। उस वक़्त दक्षिणेश्वर में श्रीरामकृष्ण परमहंस एक प्रख्यात ईश्वरप्राप्त शख्स थे। FA की पढ़ाई करते हुए नरेंद्र अपने नाना के घर अकेले रहते थे और अध्ययन करते थे। एक बार श्रीरामकृष्ण देव उस मोहल्ले में आए और एक भक्त के घर रुके, वहां सत्संग हो रहा था। 

भजन के लिए बालक नरेंद्र को भी वहां आमंत्रित किया गया। नरेंद्र का गीत सुनकर रामकृष्ण समाधिस्थ हो गए और जब कार्यक्रम की समाप्ति कर वे दक्षिणेश्वर जा रहे थे, तब वे नरेंद्र का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले - तू, दक्षिणेश्वर जरूर आना। इस पर विवेकानंद ने हां कर दी। इसके बाद बालक नरेंद्र, गुरु परमहंस के मार्गदर्शन में साधना करने लगे और धीरे धीरे उसी में रम गए । परम जिज्ञासु नरेंद्र का साधकरूप आजीवन बना रहा। 

उन्होंने एक बार अपने गुरु से कहा था कि मैं सुखदेव के जैसे समाधि में लीन रहना चाहता हूं, तो गुरु परमहंस ने कहा था कि तुझ से बहुत उम्मीदें हैं। तू इतना स्वार्थी बनेगा। इस पर नरेंद्र ने कहा कि, बगैर निर्विकल्प समाधि के मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं, तो विवेकानंद को गुरु परमहंस ने निर्विकल्प समाधि तक पहुंचाया और फिर कहा कि अब ताला बंद है और चाबी मेरे पास है। तू तो क्या तेरी हड्डियों से भी विश्व कल्याण के कार्य होंगे, जो आज सत्य प्रतित होता है।

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