सरोगेसी के कानून ने बच्चे को अपने बायोलॉजिकल पेरेंट्स से कर दिया अलग
सरोगेसी के कानून ने बच्चे को अपने बायोलॉजिकल पेरेंट्स से कर दिया अलग
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नई दिल्ली: सरोगेसी अर्थात् किराए की कोख। जो महिलांए किन्हीं कारणों से माँ नही बन पाती है, वो किसी और महिला के गर्भ को खरीदती है और उसमें अपने बच्चे को पोषित करती है। कई देशों में इस पर प्रतिबंध है, लेकिन भारत में न तो इस पर प्रतिबंध है और साथ ही इसमें खर्च भी बेहद कम है। इसलिए कई देशों के लोग भारत सरोगेट मदर के लिए आते है। चूंकि वो नौ महीने भारत में रहकर इंतजार नही कर सकते है, इसलिए वो अपने देश लौट जाते है।

इसी कड़ी में नॉर्वे के एक दंपति ने सरोगेट मदर ढूंढी और वो भारतीय महिला गर्भवती भी हुई। पर अब जब बच्चे का जन्म हो गया है तो उसे ले जाने वाला कोई नही है। जन्म देने वाली मां अपनी फीस लेकर घर चली गई और बच्चा अस्पताल में अपने परिजनों का इंतजार कर रहा है।

दरअसल कुछ समय पहले ही देश में विदेशी जोड़ो के लिए सरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया। इसी कारण बच्चे के बायो लॉजिकल पेरेंट्स को भारत आने की अनुमति नही मिल रही है। इससे पहले नॉर्वे का ये जोड़ा भारत आया था और दिल्ली आइवीएफ फर्टिलिटी सेंटर में बच्चे के जन्म के लिए रीना से करार किया गया था।

पूर्व में भी ऐसी घटनाओं को देखते हुए केंद्र ने 18 अक्टूबर को आदेश जारी कर इसे प्रतिबंधित कर दिया। एइवीएफ सेंटर ने इस मामले को विदेश मंत्रालय के सामने रखा है। जिसके बाद मंत्रालय ने भी मानवीय आधार पर नॉर्वे दूतावास को वीजा जारी करने को कहा है। केंद्र के नए आदेशों में स्पष्टता न होने के कारण विदेशी जोड़ो के सरोगेसी से जन्मे सैकड़ों बच्चे अपने परिजन के पास नही पहुंच रहे है।

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