'कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार की पीड़ा सुन लो मीलॉर्ड...', सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से किया इंकार
'कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार की पीड़ा सुन लो मीलॉर्ड...', सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से किया इंकार
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार और पलायन से सम्बंधित एक याचिका पर विचार करने से फिर इनकार कर दिया है। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ताओं को मामले में सही उपाय के सम्बन्ध में पता करने को कहा है। बता दें कि, कश्मीर में इस्लामी आतंकियों के हाथों मारे गए टीका लाल टपलू के पुत्र आशुतोष टपलू की ओर से यह याचिका दाखिल की गई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या और पलायन के मामले में जांच कराने की मांग की थी। लेकिन, आतंकी के हाथों अपने पिता को खो चुका बेटा जब इन्साफ की आस लेकर अदालत पहुंचा, तो कोर्ट ने उसे अपनी याचिका वापस लेने को कह दिया।

कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करने से साफ़ इनकार करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि इस प्रकार की याचिकाओं को पहले भी ठुकराया जा चुका है। बता दें कि, इस साल मार्च में भी एक कश्मीरी पंडित संगठन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2017 के आदेश के खिलाफ क्यूरेटिव पिटिशन फाइल की गई थी। उस आदेश में अदालत ने 1989-90 और बाद के वर्षों के दौरान कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार पर जांच की गुहार लगा रही याचिका को खारिज कर दिया था।

'रूट्स इन कश्मीर' की ओर से दाखिल की गई याचिका में सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों का उल्लेख किया गया था, जिसमें 24 जुलाई 2017 रिट याचिका और 25 अक्टूबर 2017 को समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने ये याचिकाएं इस आधार पर खारिज की थीं कि मामले को 27 साल से अधिक का समय गुजर चुका है और इस बात की संभावनाएं कम हैं कि सबूत मौजूद हों। हालांकि, यहाँ ये भी ध्यान देने वाली बात है कि, इसी सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार से लगभग 6 साल पहले हुए सिखों के कत्लेआम (1984 सिख दंगा) मामले में सुनवाई भी की, जांच के आदेश भी दिए और आरोपियों को सजा भी सुनाई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट पर यह गंभीर सवाल खड़ा हो रहा है कि, जब अदालत 1984 के कत्लेआम पर सुनवाई कर सकती है, तो 1990 के वीभत्स नरसंहार पर क्यों नहीं ?

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